रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में कांग्रेस का अधिवेशन में सोनिया गांधी ने दिए भाषण के बाद सोनिया गांधी के राजनीति से संन्यास लेने की चर्चाओं ने जोर दिया है। सोनिया गांधी ने काहा कि भारत जोडो यात्रा मेरी राजनीतिक पारी का अंतिम पड.ाव हो सकती है। रायपुर में कांग्रेस अधिवेशन के दौरान पार्टी की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भावुक भाषण दिया। सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में अपनी यात्रा का जिक्र किया और सहयोग के लिए सभी का धन्यवाद किया। इस दौरान बतौर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के सफर और पार्टी के लिए योगदान को दर्शाता एक वीडियो भी प्ले किया गया।
सोनिया गांधी के संबोधन के बाद इस तरह की अटकलें तेज हो गईं कि सोनिया गांधी ने अब सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया है। सोनिया गांधी के भावुक भाषण के बाद उनके सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के कयास लगने लगे। दरअसल, कांग्रेस के 85वें अधिवेशन में एक वीडियो प्ले किया गया जिसमें सोनिया गांधी के पार्टी के प्रति योगदान और उनकी उपलब्धियों को दर्शाया गया था।
सोनिया गांधी ने इस वीडियो के बाद भावुक संबोधन दिया और कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष और यूपीए शासन के समय के अपने कार्यकाल को लेकर कही गई बातों के लिए सभी का धन्यवाद किया। उन्होंने ये भी कहा कि साल 1998 में कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के बाद से अब तक 25 साल में हमने बड़ी उपलब्धियां भी हासिल कीं और निराशा का समय भी देखा। सोनिया गांधी ने 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में मनमोहन सिंह के नेतृत्व में मिली जीत को बड़ी उपलब्धि बताया।
कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष ने कहा कि इससे मुझे व्यक्तिगत संतोष मिलता है लेकिन जो बात मेरे लिए सबसे अधिक संतोषजनक है, वो ये कि मेरी पारी भारत जोड़ो यात्रा के साथ समाप्त हो सकती है जो एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर आई है। सोनिया गांधी ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की भी तारीफ की और इसके लिए बधाई भी दी।
सोनिया गांधी के इस बयान को लेकर सियासी गलियारों में नई चर्चा छिड़ गई। सोनिया गांधी के पारी को विराम देने वाले बयान को लेकर ये कयास लगाए जाने लगे कि उन्होंने सक्रिय राजनीति में अपनी पारी को विराम देने के संकेत दे दिए हैं। सोनिया गांधी के सक्रिय राजनीति से संन्यास को लेकर चर्चा शुरू हुई तो कांग्रेस के नेताओं ने इसे लेकर मोर्चा संभाल लिया।
कई तरह की चर्चाएं शुरू
सोनिया गांधी की करीबी और छत्तीसगढ़ कांग्रेस की प्रभारी कुमारी शैलजा ने सोनिया गांधी के इस बयान को लेकर सफाई दी। उन्होंने सोनिया गांधी के राजनीति से संन्यास की अटकलों को खारिज करते हुए कहा कि उनका ये बयान बतौर अध्यक्ष खत्म हुए कार्यकाल को लेकर था।
सोनिया गांधी सबसे लंबे समय तक रहीं कांग्रेस अध्यक्ष
सोनिया गांधी का कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में उनका कार्यकाल पार्टी के इतिहास में सबसे लंबा है, जिसमें उन्होंने 2004 और 2009 में केंद्र में सरकार बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई। वह फोर्ब्स की सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में अनेकों बार जगह बनाई है। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष थीं । सम्प्रति वे रायबरेली, उत्तरप्रदेश से सांसद हैं और इसके साथ ही वे 15 वीं लोक सभा में न सिर्फ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, बल्कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की भी प्रमुख हैं। वे 14 वीं लोक सभा में भी यूपीए की अध्यक्ष थीं। सोनिया गांधी कांग्रेस के 132 वर्षों के इतिहास में सर्वाधिक लंबे समय तक 1998 से 2017 तक अध्यक्ष रहीं है।
व्यक्तिगत जीवन
इनका जन्म वैनेतो, इटली के क्षेत्र में विसेन्जा से 20 किमी दूर स्थित एक छोटे से गांव लूसियाना में हुआ था। उनके पिता स्टेफिनो मायनो एक फासीवादी सिपाही थे, जिनका निधन 1983 में हुआ। उनकी माता पाओलो मायनों हैं। उनकी दो बहनें हैं। उनका बचपन टूरिन, इटली से 8 किमी दूर स्थित ओर्बसानो में व्यतीत हुआ। 1964 में वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में बेल शैक्षणिक निधि के भाषा विद्यालय में अंग्रेजी भाषा का अध्ययन करने गइ, जहां उनकी मुलाकात राजीव गांधी से हुई जो उस समय ट्रिनिटी कॉलेज कैम्ब्रिज में पढ़ते थे। 1968 में दोनों का विवाह हुआ जिसके बाद वे भारत में रहने लगीं। राजीव गांधी के साथ विवाह होने के 17 साल बाद उन्होंने 1983 में भारतीय नागरिकता स्वीकार की।
राजनीतिक जीवन
पति की हत्या होने के पश्चात कांग्रेस के वरिष्ट नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा कर दी परंतु सोनिया ने इसे स्वीकार नहीं किया और राजनीति और राजनीतिज्ञों के प्रति अपनी घृणा और अविश्वास को इन शब्दों में व्यक्त किया कि, मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूंगी, परंतु मैं राजनीति में कदम नहीं रखूंगी। काफी समय तक राजनीति में कदम न रख कर उन्होंने अपने बेटे और बेटी का पालन-पोषण करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया। उधर पी वी नरसिंहाराव के प्रधानमंत्रित्व काल के पश्चात कांग्रेस 1996 का आम चुनाव भी हार गई, जिससे कांग्रेस के नेताओं ने फिर से नेहरु-गांधी परिवार के किसी सदस्य की आवश्यकता अनुभव की। उनके दबाव में सोनिया गांधी ने 1997 में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण की और उसके 62 दिनों के अंदर 1998 में वो कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं। उन्होंने सरकार बनाने की असफल कोशिश भी की। राजनीति में कदम रखने के बाद उनका विदेश में जन्म हुए होने का मुद्दा उठाया गया। उनकी कमजोर हिन्दी को भी मुद्दा बनाया गया। उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगा लेकिन कांग्रेसियों ने उनका साथ नहीं छोड़ा और इन मुद्दों को नकारते रहे।
2004 में 16 दलीय गठबंधन की नेता चुनी गई
2004 के चुनाव से पूर्व आम राय ये बनाई गई थी कि अटल बिहारी वाजपेयी ही प्रधान मंत्री बनेंगे पर सोनिया ने देश भर में घूमकर खूब प्रचार किया और सब को चौंका देने वाले नतीजों में यूपीए को अनपेक्षित 200 से ज्यादा सीटें मिली। सोनिया गांधी स्वयं रायबरेली, उत्तर प्रदेश से सांसद चुनी गईं। वामपंथी दलों ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिए कांग्रेस और सहयोगी दलों की सरकार का समर्थन करने का फैसला किया जिससे कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों का स्पष्ट बहुमत पूरा हुआ। 16 मई 2004 को सोनिया गांधी 16-दलीय गंठबंधन की नेता चुनी गईं जो वामपंथी दलों के सहयोग से सरकार बनाता जिसकी प्रधानमंत्री सोनिया गांधी बनती। सबको अपेक्षा थी की सोनिया गांधी ही प्रधानमंत्री बनेंगी और सबने उनका समर्थन किया। परंतु एनडीए के नेताओं ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर आक्षेप लगाए। सुषमा स्वराज और उमा भारती ने घोषणा की कि यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो वे अपना सिर मुंडवा लेंगीं और भूमि पर ही सोयेंगीं। 18 मई को उन्होंने मनमोहन सिंह को अपना उम्मीदवार बताया और पार्टी को उनका समर्थन करने का अनुरोध किया और प्रचारित किया कि सोनिया गांधी ने स्वेच्छा से प्रधानमंत्री नहीं बनने की घोषणा की है। कांग्रेसियों ने इसका खूब विरोध किया और उनसे इस फैसले को बदलने का अनुरोध किया पर उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बनना उनका लक्ष्य कभी नहीं था। सब नेताओं ने मनमोहन सिंह का समर्थन किया और वे प्रधानमंत्री बने पर सोनिया को दल का तथा गठबंधन का अध्यक्ष चुना गया।
राष्ट्रीय सुझाव समिति का अध्यक्ष होने के कारण सोनिया गांधी पर लाभ के पद पर होने के साथ लोकसभा का सदस्य होने का आक्षेप लगा जिसके फलस्वरूप 23 मार्च 2006 को उन्होंने राष्ट्रीय सुझाव समिति के अध्यक्ष के पद और लोकसभा का सदस्यता दोनों से त्यागपत्र दे दिया। मई 2006 में वे रायबरेली, उत्तरप्रदेश से पुन: सांसद चुनी गईं और उन्होंने अपने समीपस्थ प्रतिद्वंदी को चार लाख से अधिक वोटों से हराया। 2009 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने फिर यूपीए के लिए देश की जनता से वोट मांगा। एक बार फिर यूपीए ने जीत हासिल की और सोनिया यूपीए की अध्यक्ष चुनी गईं। महात्मा गांधी की वर्षगांठ के दिन 2 अक्टूबर 2007 को सोनिया गांधी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित किया। 10 अगस्त 2019 को उनको पुन: कांग्रेस पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष चुना गया।