Shardiya Navratri 2021: नवरात्रि में देवी की आराधना विधि-विधान के साथ की जाती हैं। देवी की स्थापना कर श्रद्धा-भक्ति के साथ नौ दिनों तक मां की उपासना की जाती है और देवी अपने भक्तों को सुख-समृद्धि और आरोग्य का वरदान प्रदान करती है। देवी उपासना की एक ऐसी ही स्तुति सिद्ध कुंजिका स्तोत्र है, जिसके वाचन से दुर्गासप्तशती के वाचन के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है।
श्रीरुद्रयामल के मन्त्र से सिद्ध है
मान्यता है कि सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के पाठन से समस्त समस्याओं का निवारण होता है और पुण्यफल की प्राप्ति होती है। यह स्त्रोत श्रीरुद्रयामल के मन्त्र से सिद्ध है इसलिए इसको सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है। संध्याकाल में इसका पाठ करने से जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान हो जाता है और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को परम कल्याणकारी माना गया है और इसके वाचन से कष्टों से मुक्ति मिलती है।
मिलता है दुर्गा सप्तशती के समान फल
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र श्रीरुद्रयामल के गौरी तंत्र में शिव पार्वती संवाद के नाम से वर्णित है। दुर्गा सप्तशती के स्थान पर इसका पाठ करने का विधान है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के पाठन से दुर्गा सप्तशती के सम्पूर्ण पाठ का फल मिल जाता है। यह स्त्रोत सहज-सरल होने के साथ कम समय में इसका बहुत ही प्रभावकारी असर देखने को मिलता है। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के पाठ से आत्मिक शांति के साथ वाणी और मन को शक्ति प्राप्त होती है। आंतरिक ऊर्जा का विकास होता है और आर्थिक-शारीरिक समस्याओं के निवारण के साथ ग्रहदोषों का नाश होता है और तंत्र बाधा से मुक्ति मिलती है।
ऐसे करें सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ सुविधा अनुसार किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन यदि इसेसंध्या आरती के बाद किया जाए तो यह बहुत ही शीघ्रता से असर दिखाता है। इस स्त्रोत को रात्रि के समय भी किया जा सकता है। स्त्रोत के पाठ के लिए देवी के समक्ष दीपक प्रज्जवलिक कर लाल आसन पर लाल वस्त्र पहन कर बैठ जाएं। इसके बाद देवी को धूप-दीप और पुष्प अर्पित कर कुंजिका स्तोत्र का पाठ करें। सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पाठ एकांत में और शांति से करें। जल्दीबाजी में इस पाठ को बिलकुल न करें।
सिद्ध कुंजिका स्तोत्र
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजाप: भवेत्।।1।।
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्।।2।।
कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्।।3।।
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध् येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम्।।4।।
अथ मंत्र :-
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे। ॐ ग्लौ हुं क्लीं जूं स:
ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा।”
।।इति मंत्र:।।
नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिन।।1।।
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिन।।2।।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका।।3।।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी।।4।।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिण।।5।।
धां धीं धू धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देविशां शीं शूं मे शुभं कुरु।।6।।
हुं हु हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः।।7।।
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा।।
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा।। 8।।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिंकुरुष्व मे।।
इदंतु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति।।
यस्तु कुंजिकया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा।।
कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले साधक को पवित्रता का पालन करना चाहिए।