Shardiya Navratri 2021: नवरात्री के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की उपासना की जाती है। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएँ हाथ में कमल सुशोभित है। यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। पार्वती, वृषारूढ़ा, हेमवती और भवानी देवी के अन्य नाम हैं।
मां शैलपुत्री देती हैं आध्यात्मिक शक्ति
नवरात्रि का पहला दिन मां शैलपुत्री को समर्पित है। देवी, पर्वतों के राजा शैल की पुत्री थीं इसलिए इनका नाम शैलपुत्री है। मां प्रकृति की देवी हैं इसलिए नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मां शैलपुत्री, देवी पार्वती का अवतार हैं।
मां शैलपुत्री का स्वरूप
मां शैलपुत्री के बाएं हाथ में त्रिशूल और दाएं हाथ में डमरू है। उनका वाहन वृषभ है। मां शैलपुत्री मुख्य रूप से मूलाधार चक्र की देवी मानी जाती हैं। जिसे योग की शक्ति द्वारा जागृत कर मां से शक्ति पाई जा सकती है।
मां शैलपुत्री की कहानी
सतयुग में प्रजापति दक्ष नाम के महाराजा थे। उन्होंने एक विशाल यज्ञ किया था। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, किन्तु शिवजी को उन्होंने इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया था। जब भगवान शिव की पत्नी सती को यह पता चला कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहां जाने के लिए उनका मन मचल उठा। अपनी यह इच्छा उन्होंने महादेव को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा, ‘प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे नाराज हैं।
महादेव को नहीं किया था आमंत्रित
अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहां जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।’ शंकरजी के मना करने पर भी सती अपने पिता के घर चली गईं। सती ने पिता के घर पहुंचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया।परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत दुख पहुंचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहां भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती दुखी हो गईं। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहां आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।
सती ने स्वयं को यज्ञकुंड को किया समर्पित
वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं यज्ञ की अग्नि में स्वयं को जलाकर भस्म कर दिया।वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुईं। पार्वती, हेमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हेमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था।