जैसी की संभावना थी बारिश ने नगरीय निकाय चुनाव में अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज करा दी है। मतदान से एक दिन पहले करीब तीन घंटों की जोरदार बारिश ने सड़कों को लबालब कर दिया। मतदान दलों की भी अग्निपरीक्षा इसने ली हालांकि यहां तो बारिश को हार का ही सामना करना पड़ा क्योंकि सरकारी कर्मचारियों ने जो जज्बा दिखाया उसके आगे गरजते-बरसते मौसम की एक न चली। अब सभी की नजरे विशेष रूप से महापौर पद के लिए लगी है कि इसपर किसे जीत मिलेगी..कांग्रेस प्रत्याशी संजय शुक्ला को या भाजपा उम्मीदवार पुष्यमित्र भार्गव को? इसे लेकर राजनीतिक पंडित अपने-अपने समीकरण बैठा रहे हैं लेकिन बारिश का यह हाल कल मतदान वाले दिन भी रहा तो 18 से 22 साल की उम्र के ये करीब दो लाख मतदाता चुनाव में जीत-हार के लिए निर्णायक भी साबित हो सकते हैं।
इंदौर में महापौर पद के लिए मुख्य मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। 18 लाख मतदाताओं में से मतदान के लिए कितने मतदाता बाहर आते हैं यह तो कल शाम को वोटिंग समाप्त होने के बाद ही पता चलेगा। इस बार का महापौर पद का चुनाव पिछले कुछ चुनावों से भिन्न रहा। यहां कांग्रेस के संजय शुक्ला ने भाजपा सरकार व उनके प्रत्याशी पुष्यमित्र भार्गव पर तीखे हमले किए लेकिन भार्गव ने सधे हुए नेता की तरह विकास को ही मुद्दा बनाए रखा। भार्गव ने पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी ही पार्टी के सुदर्शन गुप्ता की हार से कुछ सीख ली होगी। संजय शुक्ला अपने विपक्षी को कुछ बोलने के लिए उकसाते हैं और गलती होने पर उसे मुद्दा बना लेते हैं। पूरे चुनाव में संजय शुक्ला अपने दमखम पर मैदान में डटे रहे, कांग्रेस पार्टी का साथ उन्हें वैसा नहीं मिल सका जैसा पुष्यमित्र भार्गव को मिला। अंतिम दिन प्रचार में पूरे समय मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की पुष्यमित्र भार्गव के लिए उपस्थिति भाजपा के मैदानी अमले को एक तरह की सीख भी थी की भार्गव को किसी भी हालत में विजयी बनाना है। शिवराजसिंह चौहान का दौरा उन वरिष्ठ नेताओं को भी चेताने के लिए माना जा रहा है जो महापौर के बजाय अपने पार्षद पद के प्रत्याशियों पर ज्यादा ही ध्यान दे रहे थे।
इसलिए महत्वपूर्ण रहेंगे 18 से 22 साल के मतदाता
कल मतदान के दौरान 18 से 22 साल के मतदाताओं के वोटों को इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इस आयु वर्ग के युवाओं ने इंदौर में भाजपा का महापौर व परिषद ही देखी है। साल 2000 में जो पैदा हुआ उस समय कैलाश विजयर्गीय इंदौर के महापौर थे। उनके बाद उमाशशि शर्मा, कृष्णमुरारी मोघे व मालिनी गौड़ रही। कुल मिलाकर इन्होंने कांग्रेस के महापौर देखे ही नहीं तो उन्हें पुराने इंदौर से नए इंदौर की तुलना करने का मौका ही नहीं मिला। इन्होंने चौड़ी सड़को से स्वच्छ इंदौर तक को जीया है। तेज बारिश के दौरान होने वाली दिक्कतों को इस आयु वर्ग के मतदाता कैसे लेते हैं इसका काफी असर देखने को मिलेगा। इस उम्र के मतदाताओं की संख्या भी 2 लाख के करीब है। कच्ची-पक्की यह उम्र अंतिम समय तक अपना वोट बदल देती है जिससे इनका आंकलन करना मुश्किल भी होता है।
समीकरण कुछ ये भी हैं-
-भाजपा के परंपरागत वोट देखें तो वह करीब दो लाख हैं। कांग्रेस तकरीबन 25 हजार के आसपास ही रह पाती है।
-मुस्लिम वोटर करीब पौने तीन लाख है। कई मस्जिदों से मतदान को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ज्यादा से ज्यादा वोट करने की बात भी कही जा रही है। इतिहास देखें तो मुस्लिम वोटर भाजपा से जुड़ नहीं सके हैं।