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घर से भागे, कूड़ा बीना, जेल ने बदल दी जिंदगी, आज 800 से ज्यादा बच्चों की संवार रहे हैं तकदीर

नोएडा: इंसान के जिंदगी में समस्या और समाधान दोनों का समावेश होता है। जब दुश्वारियां सामने होती है तो उनका हल भी इंसान खोज निकालता है। ऐसे कुछ कर गुजरने वाले अपनी और लोगों की तकदीर सुधारने वाले मानव है देव प्रताप। जिन्होंने 11 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था, लेकिन जब मुश्किलों से सामना हुआ तो खुद की जिंदगी सुधारने के बाद दूसरों का भी सहारा बने।

नशा किया और जेल भी गए

झुग्गी बस्ती के बच्चों के लिए मदद करने वाले देव प्रताप 11 साल की उम्र में अपने घर से भाग गए थे। उन्होंने मध्यप्रदेश में ग्वालियर की सड़कों पर खाक छानी और 4 साल तक कूड़ा बीना, नशा भी किया और जेल भी गए। लेकिन अचानक एक दिन उनकी किस्मत ने करवट ली और वह खुद एक मसीहा बन गए। आज वही देव प्रताप, झुग्गी-झोपड़ियों के एक हजार से ज्यादा बच्चों की मदद कर रहे हैं। वे बच्चे, जिन्हें न तो स्कूल जाने का मौका मिल पाता है और न ही ढंग का खाना। देव प्रताप अपनी जिंदगी के अतीत के आईने में झांकते हुए बताते हैं कि जह वह 11 साल की उम्र में घर से बागे थे उस वक्त उनके पास सिर्फ 120 रुपए थे।

चोरी और लूटपाट भी की

पेट पालने के लिए उन्होंने ग्वालियर की सड़कों और स्टेशन पर कचरा बीनने का काम करना शुरू कर दिया। कूड़े के ढेर के पास रात गुजारते और गंदे नाले के पास बैठकर खाना खाते थे। बदबू बर्दाश्त नहीं हुई, तो इससे बचने के लिए वह नशा करने लगे और धीरे-धीरे उन्हें इसकी लत लग गई। ड्रग्स के लिए पैसों की कमी हुई तो चोरी और लूटपाट शुरू कर दी। एक दिन वह पुलिस के हत्थे चढ़ गए और 15 दिनों तक जेल में रहे। नारकीय यातना के इम 15 दिनों ने उनके जीवन को बदल दिया। एक अजनबी ने उस वक्त जमानत पर छुड़वाकर एक ढाबे पर नौकरी भी दिलवाई। इस दौरान उन्होंने खूब मेहनत की। अपनी ईमानदारी और काबिलियत के बल पर देव अब एक जानी-मानी कंपनी में स्टोर मैनेजर हैं। उनकी जिंदगी का सकारात्मक पक्ष यह है कि वह भोजन और शिक्षा के जरिए झुग्गी-झोपड़ियों में रहनेवाले बच्चों की सेवा करते हैं।

वॉइस ऑफ स्लम संस्था चलाते हैं

देवप्रकाश प्रताप का कहना है कि वह उनकी जिंदगी के दूसरे मौके से खुश थे। लेकिन एक दिन जब मैं घर वापस आ रहा था तब मैने देखा कि सड़क पर बहुत सारे बच्चे कचरा बीन रहे हैं। तब मुझे लगा कि इनके लिए कुछ करना चाहिए। तब वॉइस ऑफ स्लम नाम की एक गैर-लाभकारी संस्था बनाई। यह संगठन जुग्गी-झोपड़ी में रह रहे बच्चों को शिक्षित करता है और उनकी रोजमर्रा की जरूरतों का ख्याल रखता है। इस योजना का फिलहाल 800 से ज्यादा बच्चे लाभ उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि हन उनका ख्याल रखते हैं और उनकी ट्रैकिंग भी करते हैं, ताकि वे वापस उस भयावह स्थिति में न लौट जाएं।

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