नई दिल्ली. प्रेमचंद यानी हिन्दी साहित्य में जिन्हें कहानियों का सम्राट माना जाता है। कहा जाता है कि किसी भी लेखक का लेखन जब समाज की गरीबी, शोषण, अन्याय और उत्पीड़न का लिखित दस्तावेज बन जाए तो वह लेखक अमर हो जाता है। प्रेमचंद ने रहस्य, रोमांच और तिलिस्म को अपने साहित्य में जगह नहीं दी बल्कि धनिया, झुनिया, सूरदास और होरी जैसे पात्रों से साहित्य को एक नई पहचान दी जो यथार्थ पर आधारित था।
प्रेमचंद जैसे लेखक सिर्फ उपन्यास या कहानी की रचना नहीं करते बल्कि वो गोदान में होरी की बेबसी दिखाते हैं तो वहीं, कफन में घीसू और माधव की गरीबी और उस गरीबी से जन्मी संवेदनहीनता जैसे विषय जब कागज पर उकेरते हैं तो पढ़कर पाठक का कलेजा बाहर आ जाता है।
बनारस में हुआ था प्रेमचंद का जन्म
प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 में बनारस शहर से चार मील दूर लमही गांव हुआ था। उन्होंने बचपन में काफी गरीबी देखी, उनके पिता डाकखाने में मामूली नौकर के तौर पर काम करते थे। प्रेमचंद ने इस कदर बचपन से ही आर्थिक तंगी का सामना किया कि उनकी लेखनी में विकास के भागते पहिये की झूठी चमक कभी नहीं दिखी, बल्कि इसकी जगह लेखक ने आजादी की आधी से ज्यादा सदी गुजरने के बाद भी लालटेन-ढ़िबरी की रौशनी में जीने को मजबूर ग़रीब-गुरबों को अपनी कहानी का पात्र बनाया। अपने उपन्यास और कहानियों में गांव के अंधेरे का जिक्र किया।
15 साल की उम्र में हुई थी शादी
प्रेमचंद के पिता ने काफी कम उम्र में उनकी शादी करवा दी थी, उनका विवाह 15 साल की उम्र में करवा दिया गया। प्रेमचंद की शादी के लगभग एक साल बाद ही उनके पिता का देहांत हो गया। इसके बाद अचानक उनके सिर पर पूरे घर की जिम्मेदारी आ गई। प्रेमचन्द पर छोटी उम्र में ही ऐसी आर्थिक विपत्तियों का पहाड़ टूटा कि उन्हें पैसे के अभाव में अपना कोट बेचना पड़ा। इतना ही नहीं खर्च चलाने के लिए उन्होंने अपनी पुस्तकें भी बेच दी।
वकील बनने का था ख्वाब
हालांकि प्रेमचंद को इन तमाम परिस्थियों में भी पढ़ने का शौक लगा रहा। प्रेमचंद ने अपनी पढ़ाई मैट्रिक तक पहुंचाई। जीवन के शुरुआती दिनों में अपने गांव से दूर बनारस पढ़ने के लिए नंगे पांव जाया करते थे। प्रेमचंद पढ़-लिखकर एक वकील बनना चाहते थे, मगर गरीबी ने तोड़ दिया। स्कूल आने-जाने के झंझट से बचने के लिए एक वकील साहब के यहां ट्यूशन पकड़ लिया। उससे पांच रुपया मिलता था, पांच रुपये में से तीन रुपये घर वालों को दे देते थे जबकि बाकी बचे दो रुपये से अपनी जिन्दगी की गाड़ी को आगे बढ़ाने की कोशिश में लगे रहते। ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में भी उन्होंने मैट्रिक पास किया।
प्रेमचंद को बचपन से ही पढ़ने-लिखने का बहुत शौक था। उर्दू में खासा रूची रखते थे, उपन्यासकार सरुर मोलमा शार, रतन नाथ सरशार के प्रेमचंद दीवाने थे। जहां भी इनकी किताबें मिलती उसे पढ़ने लगते अच्छा लिखने के लिए एकमात्र शर्त अच्छा पढ़ना है, यह प्रेमचंद जानते थे। तेरह वर्ष की उम्र से ही प्रेमचन्द ने लिखना आरंभ कर दिया था। शुरू में उन्होंने कुछ नाटक लिखे फिर बाद में उर्दू में उपन्यास लिखना आरंभ किया। इस तरह उनका साहित्यिक सफर शुरू हुआ जो मरते दम तक साथ-साथ रहा।