Pitru Paksha 2021: पितृपक्ष में पितृों के निमित्त तर्पण, श्राद्धकर्म और पिंडदान करने का बहुत महत्व हैं। सामान्यत: ज्यादातर लोग अपने पिृतों का श्राद्ध धरों में करते हैं, लेकिन पृथ्वीलोक में कुछ तीर्थस्थलों पर श्राद्धकर्म करने का विशेष महत्व हैं। इस स्थानों पर पितृकर्म करने से अनन्त गुना फल की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं इन तीर्थस्थलों के बारे में।
लोहागर
श्राद्धकर्म के लिए प्रसिद्ध तीर्थ लोहागर राजस्थान के सवाई माधोपुर में है। मान्यता है कि लोहागर तीर्थ की रक्षा स्वयं ब्रह्माजी करते हैं और यहां पर श्राद्धकर्म करने से पितृ को मोक्ष की प्राप्ति होती है। हां का मुख्य तीर्थ पर्वत से निकलने वाली सात धाराएं हैं।
गया
श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण के लिए गया को सर्वश्रेष्ठ स्थान माना गया है। फल्गु नदी के तट पर स्थित यह पितृ तीर्थ बिहार में स्थित है। मान्यता है कि गया की फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृतात्मा को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। गया तीर्थ का वर्णन रामायण में भी मिलता है।
प्रयाग
पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्थित प्रयाग नगर में श्राद्धकर्म करने से पितृों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। त्रिवेणी संगम पितृकर्म किए जाते हैं। यहां पर विधवा स्त्रियां भी मुंडन कराती हैं। मान्यता है कि इस स्थान पर पितृकर्म करने से जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्ति मिल जाती है।
ब्रह्मकपाल
ब्रह्मकपाल तीर्थ उत्तराखंड में बद्रीनाथ के पास स्थित है। ब्रह्मकपाल में तीर्थयात्री अपने पूर्वजों की शांति के लिए पिंडदान करते हैं। शास्त्रोक्त मान्यता है कि ब्रह्मकपाल में श्राद्ध कर्म करने के बाद पूर्वजों की आत्माएं तृप्त होती हैं और उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि पांडवों ने भी यहां पितृों का पिंडदान किया था।
सिद्धवट और रामघाट
उज्जैन के सिद्धवट और शिप्रा नदी के रामघाट पर पितृकर्म का विशेष महत्व है। सिद्धवट को भूलोक के पांच प्रमुख वटवृक्षों में माना जाता है। शास्त्रों में सिद्धवट का महिमामंडन किया गया है। मान्यता है कि सिद्धवट पर पितृकर्म करने से पितृों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।