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Pitru Paksha 2021: संतान ना होने पर किसको है श्राद्ध का अधिकार और कौनसा स्थान है श्राद्ध के लिए श्रेष्ठ, जानिए सब कुछ

Pitru Paksha 2021: पितृपक्ष में परिजन अपने पूर्वजों का श्राद्ध करते हैं। श्राद्धकर्म के माध्यम से वह अपने पितृों को तृप्त करते हैं और उनको प्रसन्न कर उनसे सुख-शांति और आरोग्य का वरदान प्राप्त करते हैं। सनातन संस्कृति के शास्त्रों में इस विधान का वर्णन किया गया है कि परिजनों में कौन श्राद्ध का अधिकारी होता है और किस परिस्थिति में कौन श्राद्ध कर सकता है।

  • धर्मशास्त्रों के अनुसार पितृों का तर्पण या पिंडदान करने का पहला अधिकार परिवार के सबसे बड़े पुत्र का होता है।
  • ज्येष्ठ पुत्र विवाह के पश्चात अपनी पत्नी के संग मिलकर श्राद्ध तर्पण कर सकता है।
  • ज्येष्ठ पुत्र के जीवित न होने की अवस्था में छोटा बेटा पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध कर्म का अधिकारी होता है।
  • पुत्र के न होने की स्थिति में पोता श्राद्धकर्म कर सकता है।
  • जिस व्यक्ति को बेटा नहीं होता है उसका श्राद्धकर्म उसके भाई-भतीजे कर सकते हैं।
  • पुत्र ना होने पर पुत्री के पुत्र यानी नवासे को श्राद्ध कर्म करने का अधिकार है।
  • संतान नहीं होने पर पत्नी श्राद्धकर्म कर सकती है और पति भी पत्नी का श्राद्ध कर सकता है।
  • पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में संपिंडों को श्राद्ध करना चाहिए।
  • दामाद भी श्राद्धकर्म करने का अधिकारी होता है।
  • दत्तक पुत्र भी श्राद्धकर्म का अधिकारी होता है।

श्राद्धकर्म का स्थान

श्राद्धकर्म के माध्यम से पितृों को तृप्त किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार पितृकर्म स्वयं की भूमि या घर पर ही करना श्रेष्ठ होता है। दूसरे के घर में या भूमि पर श्राद्ध कभी नहीं करना चाहिए। जिस भूमि पर किसी का स्वामित्व न हो सार्वजनिक हो, ऐसी भूमि पर श्राद्ध किया जा सकता है।

परकीय प्रदेशेषु पितृणां निवषयेत्तुय:।
तद्भूमि स्वामि पितृभि: श्राद्ध कर्म विहन्यते।।

दूसरे के घर में जो श्राद्ध किया जाता है, उसमें श्राद्ध करने वाले के पितरों को कुछ नहीं मिलता। गृह स्वामी के पितृ बलपूर्वक सब छीन लेते हैं।

तीर्थदृष्टगुणं पुण्यं स्वगृहे ददत: शुभे।

तीर्थ में किए गए श्राद्ध से भी आठ गुना पुण्य श्राद्ध अपने घर में करने से मिलता है।

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