इंदौर। देश की राजधानी दिल्ली में रविवार शाम सरेराह हुई एक नाबालिग लड़की की जघन्य murder का मामला सोमवार को भी मीडिया जगत में छाया रहा। दरअसल राजधानी के शाहबाद डेरी क्षेत्र में 20 साल के साहिल ने सड़क पर अपनी गर्लफ्रेंड पर चाकू से लगातार 16 वार कर और सिर पर पत्थर पटककर murder कर दिया और फरार हो गया। पुलिस ने 18 घंटे बाद साहिल को यूपी के बुलंदशहर से गिरफ्तार कर लिया। खबरों के मुताबिक दोनों दो-तीन साल से लिव-इन में रह रहे थे। इस घटना के बाद एक बार फिर लिव-इन संबंधों पर सवाल उठने लगे हैं।
आज से 20 साल पहले तक देश में ऐसे संबध नहीं के बराबर थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से आधुनिक पीढ़ी के लिए ऐसे संबंध आम हो गए हैं। ऐसे संबंधों को लेकर हमारे देश में कोई कानून नहीं है लेकिन शीर्ष कोर्ट सहित विभिन्न अदालतों द्वारा दिए गए फैसलों में लिव-इन संबंध अपराध भी नहीं हैं। भले ही समाज इसे अनैतिक मानता हो। यह भी सच है कि ऐसे रिश्तों से अपराध और murder बढ़ते जा रहे हैं। हत्या जैसे अपराध जिनमें प्यार शुन्य हो जाता है।
पिछले पांच माह में दिल्ली-एनसीआर में लिव-इन संबंधों के चलते murder के पांच से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। इनमें दिल्ली के रोहिणी में संजय द्वारा अपनी पार्टनर पूनम की हत्या, दिल्ली के तिलक नगर में मनप्रीत द्वारा रेखा की हत्या, गाजियाबाद के खोड़ा इलाके में रमन द्वारा दिव्या की हत्या, दिल्ली में आफताब द्वारा श्रद्धा की murder और अब साहिल द्वारा खुलेआम सड़क पर अपनी नाबालिग गर्लफ्रेंड का murder शामिल है।
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ToggleLove, relation और murder : यह है चिंता का विषय
चिंता का विषय यह है कि लिव-इन संबंधों में प्रताड़ना और हत्या जैसे अपराध/murder महिलाओं के साथ ही हो रहे हैं। ऐसा नहीं है कि ये मामले दिल्ली जैसे महानगरों में ही सामने आ रहे हैं बल्कि हर छोटे-बड़े शहरों में ऐसे मामले और ऐसे संबंध देखने को मिल रहे हैं, लेकिन सच तो यह है कि अपनी मर्जी से बनाए गए संबंधों के बावजूद महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं।
कितनी महिलाएं यौन हिंसा की शिकार?
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 में सामने आया है कि देश में 16 प्रतिशत से अधिक महिलाएं ऐसी हैं,जो अपने बॉयफ्रेंड या एक्स की यौन हिंसा/murder की शिकार हुई हैं। यानी उन्हें अंतरंगता के लिए मजबूर किया गया। साथ ही इन महिलाओं के साथ मारपीट भी हुई। साफ है कि लिव-इन संबंधों में रहने वाली महिलाएं बी शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार होती हैं।
80 फीसदी लोग लिव-इन के पक्ष में
देश में लिव-इन संबंधों को कितना समर्थन मिल रहा है, इसका खुलासा साल 2018 में हुए एक सर्वे में सामने आया है। इस सर्वे में 80 फीसदी लोग लिव-इन रिलेशनशिप के समर्थन में थे। वहीं 26 फीसदी लोगों का कहना था कि यदि मौका मिला तो वे भी ऐसा संबंध बनाना चाहेंगे।
बढ़ते लिव-इन संबंधों का एक कारण यह भी
एक अध्ययन के मुताबिक देश में सबसे अधिक लिव-इन संबंधों के मामले बेंगलुरु में हैं। वजह यह है कि यह आईटी का हब है। यहां देशभर से युवक-युवतियां आईटी इंडस्ट्री में जॉब के लिए पहुंचते हैं। ऐसे में ये युवक-युवतियां करीब आ जाते हैं। वहीं दिल्ली के एक युवक का कहना है कि महंगे किराये के चलते मजबूरी में युवक-युवतियों को रूम शेयर करना पड़ता है। युवकों का मानना होता है कि किसी युवक के साथ रूम शेयर करने से बेहतर है किसी युवती के साथ रूम शेयर करना।
मध्यप्रदेश को लेकर बड़ा खुलासा
पुलिस महिला सुरक्षा शाखा ने हाल ही में एक स्टड़ी की है। इसमें साफ हुआ है कि मप्र में साल 2019, 2020 और 2021 के दौरान लिव इन में रहने वाली महिलाओं ने सबसे ज्यादा बलात्कार/murder के मामले दर्ज किए हैं। इस समयावधि में कुल 14,476 केस रेप/murder के दर्ज हुए। इनमें से 85 प्रतिशत केस लिव इन संबंधों से जुड़े थे। सभी आरोपी लिव इन पार्टनर थे। केवल 2 प्रतिशत केस में आरोपी अजनबी थे।
आतंकी घटनाओं नहीं होती इतनी हत्याएं
एनसीआरबी यानी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आतंकी घटनाओं में इतने murder नहीं होते जितने प्यार के मामलों में होते हैं। 2001 से 2015 के बीच प्यार के मामलों के चलते 38,585 लोगों ने murder और गैर इरादतन हत्या जैसे अपराध किए थे। वहीं 2020 की तुलना में 2021 में देश भर में महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 15.8 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
अप्रैल 2022 में इंदौर हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी
हाईकोर्ट की इंदौर पीठ के जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने एक महिला से बार-बार रेप/murder, उसकी सहमति के बिना उसका जबरन गर्भपात कराने, आपराधिक धमकी देने और अन्य आरोपों का सामना कर रहे 25 वर्षीय व्यक्ति की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए तल्ख टिप्पणियां की थीं। एकल पीठ ने 12 अप्रैल 2022 को जारी आदेश में कहा था कि हाल के दिनों में लिव-इन संबंधों से उत्पन्न अपराधों की बाढ़ का संज्ञान लेते हुए अदालत यह टिप्पणी करने पर मजबूर है कि लिव-इन संबंधों का अभिशाप संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिलने वाली संवैधानिक गारंटी का एक सह-उत्पाद है
जो भारतीय समाज के लोकाचार को निगल रहा है और तीव्र कामुक व्यवहार के साथ ही व्याभिचार को बढ़ावा दे रहा है जिससे यौन अपराधों में लगातार इजाफा हो रहा है। जो लोग इस आजादी का शोषण करना चाहते हैं, वे इसे तुरंत अपनाते हैं, लेकिन वे इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं कि इसकी अपनी सीमाएं हैं और यह आजादी दोनों में से किसी भी जोड़ीदार को एक-दूसरे पर कोई अधिकार प्रदान नहीं करती है।
सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका
पिछले दिनों लिव-इन संबंधों के पंजीयन का सिस्टम बनाने की मांग को लेकर लगी याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने इसे व्यवहारिक नहीं माना। दरअसल इस याचिका में ऐसे संबंधों के कारण बढ़ती हत्याओं का हवाला दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए सवाल किया था कि क्या लोग ऐसे संबंधों का रजिस्ट्रेशन कराना चाहेंगे? कोर्ट ने यह भी सवाल किया था कि ऐसे संबंधों का रजिस्ट्रेशन कहां होगा? इस पर वकील ने कहा था कि केंद्र सरकार को इसकी व्यवस्था करनी चाहिए।
बेहतर है कोर्ट मैरिज कर लें
लड़कियां लिव-इन संबंध के लिए अपने माता-पिता को छोड़ने के लिए जिम्मेदार हैं। इसकी वजह से अपराध हो रहे हैं। ऐसे संबंधों से बेहतर है कोर्ट मैरिज कर लेनी चाहिए और फिर साथ रहना चाहिए।
-कौशल किशोर, राज्य मंत्री, केंद्रीय शहरी आवास मंत्रालय
कानून तो होना चाहिए
लिव-इन के मामलों के लिए भी कानून तो होना चाहिए। शादी की तरह लिव-इन का भी रजिस्ट्रेशन होना चाहिए। लिव-इन संबंध तोड़ने में भी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना जरूरी बनाया जाना चाहिए।
-शिव कुमार शर्मा, पूर्व न्यायाधीश, राजस्थान हाईकोर्ट