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सवा करोड़ रुपये के पैकेज वाली जॉब छोड़ अब जैन मुनि बनेंगे प्रांशुक, अमेरिका में थे डेटा साइंटिस्ट

अमेरिका में सवा करोड़ का पैकेज छोड़ने वाले प्रांशुक कांठेड़ आज दीक्षा ग्रहण कर संत बन जाएंगे। सफलता के शिखर पर पहुंचने के बाद ये फैसला करना उनके लिए काफी आसान था। उन्होंने कहा कि मैं अनंत सुख के लिए संत बनने जा रहा हूं।

बतादें कि 28 साल के प्रांशुक कांठेड़ अमेरिका की कंपनी में सवा करोड़ के पैकेज पर डेटा साइंटिस्ट थे। जहाँ अचानक सांसारिक जीवन से मोह भंग हो गया। डेढ़ साल पहले नौकरी छोड़ वह एमपी के देवास आ गए। उन्होंने आज यानी सोमवार को जैन संत बनने के लिए दीक्षा ली है। आइये जानते हैं प्रांशुक कांठेड़ के जैन संत बनने की कहानी।

बता दे प्रांशुक के साथ उनके मामा के बेटे MBA पास थांदला के रहने वाले मुमुक्षु प्रियांश लोढ़ा और रतलाम के मुमुक्षु पवन कासवां दीक्षित भी संयम पथ पर चलेंगे। सोमवार सुबह देवास के हाटपीपल्या मंडी प्रांगण में तीनों ने उमेश मुनि जी के शिष्य जिनेंद्र मुनि जी से जैन संत बनने के लिए दीक्षा ली। समारोह में हजारों लोग उपस्थित हुए। करीब 3 घंटे चली प्रक्रिया के दौरान दीक्षा समारोह में सूत्र वाचन के साथ प्रारंपरिक प्रक्रियाएं हुईं। उसके बाद दीक्षार्थियों को दीक्षा के वस्त्र धारण करवाए गए। इस आयोजन में देशभर से कई जगह से लोग उपस्थित हुए है। करीब 4 हजार लोगों की मौजूदगी में यह आयोजन संपन्न हुआ।

बता दे देवास के हाटपिपल्या निवासी प्रांशुक के पिता राकेश कांठेड़ कारोबारी हैं। अब उनका पूरा परिवार इंदौर में रहता है। पिता राकेश ने बताया कि प्रांशुक ने इंदौर के जीएसआईटीएस कॉलेज से बीई की। आगे की पढ़ाई के लिए वह अमेरिका चला गया। एमएस करने के बाद प्रांशुक ने अमेरिका में ही 2017 में डेटा साइंटिस्ट की नौकरी ज्वाइन कर ली। उसका सालाना पैकेज सवा करोड़ रुपए था। विदेश में रहने के बाद भी वह गुरु भगवंतों की किताबें पढ़ता रहा। वह इंटरनेट के माध्यम से उनके प्रवचन सुनता रहा। नौकरी से मोह भंग होने पर जनवरी 2021 में वह घर लौट आया। घर में प्रांशुक की मां और उसका एक छोटा भाई है।

पिता ने बताया कि प्रांशुक का झुकाव बचपन से ही धार्मिक कार्यों की ओर रहा। 2007 में वह उमेश मुनि जी के संपर्क में आया। उनके विचारों से प्रभावित होकर उसे वैराग्य की और अग्रसर होने की प्रेरणा मिली। तब गुरु भगवंत ने उन्हें संयम पथ के लिए पूर्ण योग्य नहीं माना।

इसके बाद उसने धार्मिक कार्यों के साथ पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किया। 2016 में एक बार फिर पढ़ाई के दौरान वैराग्य धारण करने के लिए प्रयत्न किया, लेकिन गुरुदेव ने और योग्य होने की बात कही। इसके बाद वह अमेरिका चला गया। फिर 2021 में एक बार फिर से वैराग्य धारण करने का संकल्प लेकर अमेरिका से नौकरी छोड़कर भारत आ गया। जिसके बाद 26 दिसम्बर 2022 उन्होंने जैन संत बनने की राह अपना ली।

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