Janmashtami 2021: भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति के कई आयाम है। कृष्ण भक्त द्वारकाधीश को प्रसन्न करने के लिए अनेकों प्रकार से भक्ति करते हैं। श्रीकृष्ण को छप्पनभोग लगाने की परंपरा है। इसको अन्नकूट भी कहा जाता है। अन्नकूट की परंपरा पौराणिक है। छप्पनभोग में श्रीकृष्ण को ऐसे खाद्य पदार्थों का भोग लगाया जाता है, जिनको खाना वर्षाकाल में निषेध बताया गया है।
ब्रज का महोत्सव है छप्पनभोग
पौराणिक शास्त्रों के अनुसार अन्नकूट की परंपरा देवराज इन्द्र के घमंड से संबंधित है। देवराज इंद्र के क्रोध से ब्रजवासियों की सुरक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर धारण किया तो इंद्र को काफी आश्चर्य हुआ। इंद्र ब्रहमाजी के पास गए और इसका कारण पूछा तब उन्होंने इन्द्र को श्रीकृष्ण के श्रीहरी का अवतार होने की बात बताई। ब्रह्माजी के वचन सुनकर इन्द्र स्वयं ब्रज गए और भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में गिरकर क्षमायाचना करने लगे। सात दिनों बाद श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे उतारकर रखा और ब्रजवासियों से कहा कि हर साल गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का उत्सव मनाया करो। तभी से यह पर्व ‘अन्नकूट’ के नाम से जाना जाता है।
7 दिनों तक निराहार रहे थे श्रीकृष्ण
शास्त्रोक्त मान्यता है कि माता यशोदा बालकृष्ण को दिन में आठ पहर बड़े मनुहार के साथ भोजन करवाती थी अर्थात श्रीकृष्ण आठ प्रहर में 8 बार भोजन ग्रहण करते थे। जब इन्द्र के क्रोध से ब्रजमंडल की सुरक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था, उस समय वह लगातार 7 दिन तक अन्न-जल ग्रहण नहीं कर सके थे।
माता यशोदा ने बनाए थे बालकृष्ण के लिए 56 भोग
8वें दिन जब इंद्र ने श्रीकृष्ण से क्षमायाचना करते हुए वर्षा को रोक दिया तो श्रीकृष्ण ने सभी ब्रजवासियों को गोवर्धन पर्वत की छत्रछाया से से बाहर आने का आदेश दिया। उस समय श्रीकृष्ण का 7 दिनों तक निराहार रहना ब्रजवासियों और माता यशोदा को अच्छा नहीं लगा। तब बालकृष्ण के लिए माता यशोदा ने ब्रजवासियों के साथ मिलकर 7 दिन और 8 पहर के हिसाब से 56 तरह के व्यंजन बनाकर श्रीकृष्ण को महाभोग लगाया था।
दिव्य कमल पर विराजित है श्रीकृष्ण
शास्त्रोक्त मान्यता के अनुसार गौलोक में भगवान श्रीकृष्ण राधारानी के साथ एक दिव्य कमल पर विराजमान हैं। इस दिव्य कमल की 3 परतें हैं। इसकी पहली परत में 8, दूसरी में 16 और तीसरी में 32 पंखुड़ियां हैं। इस कमल की प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और मध्य में भगवान स्वयं विराजमान हैं, इस तरह दिव्य कमल की कुल पंखुड़ियों का योग 56 होता है। इसलिए 56 भोग से भगवान श्रीकृष्ण अपनी सखियों संग तृप्त होते हैं।
गोपियों ने किए थे श्रीकृष्ण को 56 भोग
श्रीमदभागवत के अनुसार श्रीकृष्ण के प्रेम में मग्न ब्रजमंडल की गोपिकाओं ने एक महिने तक ब्रहम मुहूर्त में यमुना के स्वच्छ और शीतल जल में स्नान किया था, क्योंकि समस्त गोपियां श्री कृष्ण को अपने पति के रूप में देखना चाहती थी। गोपियां यमुना स्नान के पश्चात अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए माता कात्यायिनी की उपासना करती थी। तब श्रीकृष्ण और माता कात्यायिनी ने गोपियों को मनोकामना पूर्ति का आर्शीवाद दिया था। उस समय व्रत का पारायण और मनोकामना की पूर्ति होने के उपलक्ष्य में उद्यापन स्वरूप गोपिकाओं ने 56 महाभोग बनाकर श्रीकृष्ण और माता कात्यायिनी को समर्पित किए थे।
श्रीकृष्ण की बारात में बने थे 56 भोग
शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि जब श्रीकृष्ण बारात लेकर श्रीराधारानी को ब्याहने बरसाना गए थे तो बारात के स्वागत-सत्कार के लिए श्रीवृषभानुजी ने 56 भोग बनाए थे। इस विवाह समारोह मॆ शामिल होने वाले नंदबाबा, यशोदामाता और बलराम, रेवती सहित विशिष्टजनों की संख्या भी 56 थी। श्रीकृष्ण को विवाह समारोह में 56 भोग समर्पित करने वाले 9 नंद, 9 उपनंद, 6 वृषभानु, 24 पटरानी और सखाओं का योग भी 56 था।
छप्पनभोग के व्यंजन
1.भक्त (भात)
- सूप (दाल)
- प्रलेह (चटनी)
- सदिका (कढ़ी)
- दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी)
- सिखरिणी (सिखरन)
- अवलेह (शरबत)
- बालका (बाटी)
- इक्षु खेरिणी (मुरब्बा)
- त्रिकोण (शर्करा युक्त)
- बटक (बड़ा)
- मधु शीर्षक (मठरी)
- फेणिका (फेनी)
- परिष्टश्च (पूरी)
- शतपत्र (खजला)
- सधिद्रक (घेवर)
- चक्राम (मालपुआ)
- चिल्डिका (चोला)
- सुधाकुंडलिका (जलेबी)
- धृतपूर (मेसू)
- वायुपूर (रसगुल्ला)
- चन्द्रकला (पगी हुई)
- दधि (महारायता)
- स्थूली (थूली)
- कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी)
- खंड मंडल (खुरमा)
- गोधूम (दलिया)
- परिखा
- सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त)
- दधिरूप (बिलसारू)
- मोदक (लड्डू)
- शाक (साग)
- सौधान (अधानौ अचार)
- मंडका (मोठ)
- पायस (खीर)
- दधि (दही)
- गोघृत (गाय का घी)
- हैयंगपीनम (मक्खन)
- मंडूरी (मलाई)
- कूपिका (रबड़ी)
- पर्पट (पापड़)
- शक्तिका (सीरा)
- लसिका (लस्सी)
- सुवत
- संघाय (मोहन)
- सुफला (सुपारी)
- सिता (इलायची)
- फल
- तांबूल
- मोहन भोग
- लवण
- कषाय
- मधुर
- तिक्त
- कटु
- अम्ल