Jagannath Rath Yatra 2021: सनातन संस्कृति के प्रमुख देव जगन्नाथ को समर्पित जगन्नाथ मंदिर सनातन संस्कृति के चार धामों में से एक है। भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित इस तीर्थ में जगन्नाथ शब्द का अर्थ है जगत के स्वामी। इसलिए प्रभू के इस धाम को जगन्नाथ धाम या जगन्नाथ पुरी कहा जाता है। इस तीर्थ को वैष्णव सम्प्रदाय के प्रमुख मंदिरों में से एक माना जाता है। यह मंदिर गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय के लिये विशेष महत्व रखता है।
गंग वंश के महाराजा ने शुरू किया था निर्माण
पौराणिक शहर पुरी से मिले प्राचीन गंग वंश के ताम्र पत्रों के अनुसार वर्तमान मंदिर का निर्माण कलिंग राजा अनंतवर्मन चोडगंग देव ने प्रारम्भ करवाया था। मंदिर के जगमोहन और विमान भाग का निर्माण अनंतवर्मन चोडगंग देव के शासन काल (१०७८ – ११४८) में हुआ था। उसके बाद इस मंदिर को वर्तमान स्वरूप ओडिशा के महाराजा अनंग भीम देव ने प्रदान किया।
कलिंग शैली की स्थापत्यकला का है बेमिसाल नमूना
पौराणिक जगन्नाथ मंदिर 400,000 वर्ग फुट यानी 37,000 वर्गमीटर के विस्तृत क्षेत्र में फैला हुआ है। यह मंदिर चारों और से मजबूत सैकड़ों साल पुराने परकोटे से घिरा हुआ है। कलिंग शैली की स्थापत्यकला और शिल्पकला की अदभुत कारिगरी के दर्शन इस मंदिर के कण-कण में होते हैं। जगन्नाथ मंदिर वक्ररेखीय आकार में बना हुआ है, इसके गगनचुंबी शिखर पर भगवान श्रीहरी का आठ आरों वाला श्री सुदर्शन चक्र मंडित है। इस चक्र को नीलचक्र भी कहा जाता हैं। यह पवित्र चक्र शास्त्रोक्त विधि से अष्टधातु से निर्मित है और यह अति पवित्र माना जाता है। मंदिर पर लहराता लाल ध्वज भगवान श्रीहरी का प्रतीक है।
30 छोटे और बड़े मंदिरों से घिरा है मुख्य मंदिर
मंदिर 214 फीट यानी 65 मीटर ऊंचे काले पत्थरों के चबूतरे पर बना हुआ है। इस मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, बहन देवी सुभद्रा और भ्राता भगवान बलभद्र की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर का मुख्य भवन 20 फीट यानी 6.1 मीटर ऊंची दीवार से चारों ओर से घिरा हुआ है तथा दूसरी दीवार मुख्य मंदिर को चारों ओर से सुरक्षा प्रदान करती है।मंदिर परिसर में भव्य सोलह किनारों वाला एकाश्म स्तंभ, मुख्य द्वार के ठीक सामने स्थापित किया गया है। मंदिर के मुख्य द्वार पर पाषाण के दो सिंह बने हुए हैं जो मंदिर की रक्षा करते हुए प्रतीत होते हैं। भगवान जगन्नाथ का मुख्य मंदिर करीब 30 छोटे और बड़े मंदिरों से घिरा हुआ है, जगन्नाथ मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण, ब्रह्म पुराण और नारद पुराण, के साथ रामायण और महाभारत में मिलता है।