धर्म: एकांतवास हमारी प्राचीनकाल से चली आ रही परंपरा का हिस्सा है। पौराणिक काल में इसका काफी महत्व रहा है। हमारे ऋषि-मुनि एकांतवास में रहकर तपस्या करते थे। कोरोनाकाल में एकांतवास का महत्व काफी बढ़ गया है और लोग इससे अच्छी तरह से परिचित हो गए हैं। अब हम बात करते हैं पौराणिक काल के कुछ खास एकांतवास की।
सूतक
प्राचीनकाल से सनातन संस्कृति में सूतक और पातक की परंपरा चली आ रही है। कुछ विशेष परिस्थितियों में इसका पालन किया जाता है। जन्म काल, ग्रहण, स्त्री के मासिक धर्म , महामारी और मृत्यु में सूतक और पातक का पालन किया जाता है। सूतक और पातक के दौरान संबंधित व्यक्ति से दूरी बनाकर रखी जाती है। उसको दूर से भोजन-पानी देकर उसके वस्त्र आदि अलग रखे जाते हैं।
कल्पवास
कल्पवास भी एक तरह के एकांतवास का हिस्सा है, जिसमें शुद्धिकरण और साधना का प्रावधान है। कुंभ के दौरान पवित्र नदी के तटों पर गृहस्थ लोग कल्पवास करते हैं। गृहस्थ कल्पवास का संकल्प लेकर पर्णकुटी में अकेले कgछ समय बिताते हैं। सात्विक भोजन दिन में एक बार लेकर भक्तिभाव में डूबे रहते हैं। सांसरिकता से दूर आध्यात्मिक उन्नति और ईश्वर से एकाकार के लिए साधना करते हैं। इस दौरान कल्पवासियों को सिद्ध ऋषि-मुनियों का सानिध्य भी प्राप्त होता है।
तीर्थयात्रा
तीर्थाटन का सनातन संस्कृति में बड़ा महत्व है। प्राचीनकाल में जब आवागमन के ज्यादा संसाधन नहीं थे उस समय लोग पैदल या घोड़े या दूसरे सामान्य साधनों से यात्रा करते थे। ऐसे में लंबे समय तक घर से बाहर रहते थे और पेड़ के नीचे या नदी किनारों और अनजान जगहों पर अपना समय व्यतीत करते थे। ऐसे में वे घर-परिवार की चिंताओं से मुक्त रहकर अपनी जीवन बिताते थे। आज भी सन्यासी ज्यादातर एकांतवासी होते हैं यानी अपने योग और साधना के लिए एकांत में समय बिताते हैं।