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सुप्रीम कोर्ट का दखल: किस कानून के तहत एक हजार और पांच सौ रुपए के नोट बंद किए गए थे? केंद्र और आरबीआई बताए

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में नोटबंदी के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई हुई। 2016 की नोटबंदी के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा दखल दिया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार और आरबीआई से 500 और 1000 रुपए के नोटों को बंद करने के फैसले पर 9 नवंबर को होने वाली सुनवाई से पहले व्यापक हलफनामा दाखिल करने को कहा है। इसी के साथ ही कोर्ट ने नोटबंदी को लेकर कई गंभीर सवाल भी किए हैं। जस्टिस सैयद अब्दुल नजीर की अगुआई वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने नोटबंदी पर केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को नोटिस जारी करते हुए यह बताने को कहा है कि किस कानून के तहत 1000 और 500 रुपए के नोट बंद किए गए थे। ज्ञात हो कि 8 नवंबर, 2016 को रात 8 बजे अचानक नोटबंदी का ऐलान किया गया था।

याचिकाकर्ताओं की दलील है कि भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26 (2) किसी विशेष मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों को पूरी तरह से रद्द करने के लिए सरकार को अधिकृत नहीं करती है। धारा 26 (2) केंद्र को एक खास सीरीज के करेंसी नोटों को रद्द करने का अधिकार देती है, न कि संपूर्ण करेंसी नोटों को। अब इसी का जवाब सरकार और आरबीआई को देना है।बता दें कि 16 दिसंबर, 2016 को तत्कालीन सीजेआई टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने नोटबंदी की वैधता वाली याचिका को पांच न्यायाधीशों की बड़ी बेंच के पास भेज दिया था।

जानते हैं लक्ष्मण रेखा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा पर लक्ष्मण रेखा से अवगत है, लेकिन यह तय करने के लिए 2016 के विमुद्रीकरण के फैसले की जांच करनी होगी कि क्या यह मुद्दा केवल अकादमिक अभ्यास बन गया है। पीठ ने कहा कि जब संविधान पीठ के समक्ष कोई मुद्दा उठता है, तो जवाब देना उसका कर्तव्य है।

जिस तरह से किया गया, उसकी जांच जरूरी

अदालत ने कहा कि इस मुद्दे पर जवाब देने के लिए हमें इसे सुनना होगा और जवाब देना होगा कि क्या यह अकादमिक है, अकादमिक नहीं है या न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है। इस मामले में सरकार की नीति और उसकी सोच है जो इस मामले का एक पहलू है। लक्ष्मण रेखा कहां है, यह हम हमेशा से जानते हैं, लेकिन जिस तरह से यह किया गया, उसकी जांच होनी चाहिए। हमें यह तय करने के लिए वकील को सुनना होगा।

कोर्ट ने केंद्र से पूछे ये सवाल

-नोटबंदी की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से सवाल पूछा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट को भविष्य के लिए कानून तय नहीं करना चाहिए?
-क्या आरबीआई एक्ट के तहत नोटबंदी की जा सकती है?
-नोटबंदी के लिए अलग कानून की जरूरत है या नहीं?

सॉलिसिटर जनरल ने कहा- यह अकादमिक मुद्दा

केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अकादमिक मुद्दों पर अदालत का समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। मेहता की दलील पर आपत्ति जताते हुए याचिकाकर्ता विवेक नारायण शर्मा का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि वे संवैधानिक पीठ के समय की बर्बादी जैसे शब्दों से हैरान हैं क्योंकि पिछली पीठ ने कहा था कि इन मामलों को एक संविधान पीठ के समक्ष रखा जाना चाहिए।

चिदंबरम ने कहा- मुद्दा अकादमिक नहीं

एक पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता पी चिदंबरम ने कहा कि यह मुद्दा अकादमिक नहीं है और इसका फैसला शीर्ष अदालत को करना है। उन्होंने कहा कि इस तरह के विमुद्रीकरण के लिए संसद के एक अलग अधिनियम की आवश्यकता है।

एक साथ 58 से ज्यादा याचिकाओं पर सुनवाई

2016 में विवेक शर्मा ने याचिका दाखिल कर सरकार के फैसले को चुनौती दी। इसके बाद 58 और याचिकाएं दाखिल की गईं। अब तक सिर्फ तीन याचिकाओं पर ही सुनवाई हो रही थी। अब सब पर एक साथ सुनवाई होगी। अगली सुनवाई 9 नवंबर को होना है।

9.21 लाख करोड़ रुपए गायब

2016 की नोटबंदी के समय केंद्र सरकार को उम्मीद थी कि भ्रष्टाचारियों से कम से कम 3-4 लाख करोड़ रुपए का काला धन बाहर आ जाएगा। हालांकि पूरी कवायद में काला धन तो 1.3 लाख करोड़ ही बाहर आया, लेकिन नोटबंदी के समय जारी नए 500 और 2000 के नोटों में अब 9.21 लाख करोड़ गायब जरूर हो गए हैं। दरअसल आरबीआई की 2016-17 से लेकर ताजा 2021-22 तक की वार्षिक रिपोर्ट्स बताती हैं कि आरबीआई ने 2016 से लेकर अब तक 500 और 2000 के कुल 6,849 करोड़ करंसी नोट छापे थे। उनमें से 1,680 करोड़ से ज्यादा करंसी नोट सकुर्लेशन से गायब हैं। इन गायब नोटों की वैल्यू 9.21 लाख करोड़ रुपए है। इन गायब नोटों में वो नोट शामिल नहीं हैं जिन्हें खराब हो जाने के बाद आरबीआई ने नष्ट कर दिया।

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