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1971 की जंग में जीत कर भी कश्मीर मुद्दा हल नहीं कर पाया था भारत

नई दिल्ली। 16 दिसंबर 1971 को एक नया देश अस्तित्व में आया। इस नए मुल्क के निर्माण में भारत का बड़ा योगदान रहा, लेकिन इसके बावजूद भारत युद्ध जीतकर भी कूटनीति की टेबल पर कश्मीर समस्या का हल करने का स्वर्णिम अवसर गंवा बैठा। इसके लिए आज भी विपक्ष और देश तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को जिम्मेदार ठहराते हैं।

93 हजार सैनिकों ने किया था आत्मसमर्पण

1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी। उस वक्त पाकिस्तान पराजय के दंश को झेल रहा था और भारी दबाव में था। विशेषज्ञों का कहा था कि एक पराजित मुल्क से उस वक्त कश्मीर समस्या को हल करने के उचित समय था। पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर दिया था। भारत के कब्जे में पाकिस्तान की काफी जमीन भी थी, लेकिन इसके बावजूद रणक्षेत्र में लड़ी गई जंग को हम टेबल पर गंवा बैठे।

भुट्टो की बातों में आ गई थी इंदिरा गांधी

उस वक्त पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की बातों में इंदिरा गांधी आ गई और इस समस्या के समाधान का बेहतर मौका गंवा दिया। शिमला समझोते के लिेए आए भुट्टों पर भारी दबाव था वह पराजित मुल्क का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। यह वही भुट्टों थे जो 1965 की जंग के लिए जिम्मेदार थे और घास खाकर परमाणु बम बनाने और भारत से हमेशा जंग की बात कहते रहते थे, लेकिन इसके बावजूद इंदिरा गांधी ने सारे सुझावों और परिस्थितियों को दरकिनार करते हुए पाकिस्तान को सैनिकों के साथ जीती गई जमीन भी वापस कर दी।

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