लावारिस लाशों को मोक्ष दिलाती है 'हीरा बुआ' ऐसी है उनकी दास्तान - Mradubhashi - MP News, MP News in Hindi, Top News, Latest News, Hindi News, हिंदी समाचार, Breaking News, Latest News in Hindi
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लावारिस लाशों को मोक्ष दिलाती है ‘हीरा बुआ’ ऐसी है उनकी दास्तान

पेशे से आया हीरा बुआ गरीबों की मदद के लिए हर समय तैयार रहती है।

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भोपाल। हीरा बाई.. एक ऐसी शख्सियत जो बेसहारा का सहारा बनकर अब तक 27 सौ से अधिक लावारिस लोगों का अंतिम संस्कार कर चुकी है। ये शख्सियत हैं भोपाल के हमीदिया अस्पताल में कार्यरत हीरा बाई परदेसी। हीरा बाई पेशे से आया का काम करती हैं, रोजाना दोपहर 2 बजे शिफ्ट खत्म होने के बाद हीरा बाई अस्पताल से सटे एक मंदिर में वक्त बिताती हैं। यहां वो उन लोगों से मिलती हैं जिन्हें उनकी मदद की जरूरत होती है। हीरा बाई अपने पेशे से इतर लोगों की मदद करने के साथ लावारिस लाशों का दाह संस्कार करती हैं।

पुराने भोपाल की चर्चित हस्ती है हीराबाई

हीरा बाई पुराने भोपाल में एक चर्चित हस्ती हैं। लोग उन्हें प्यार से ‘हीरा बुआ’ कह कर बुलाते हैं। पिछले दो दशकों से हीरा बुआ उन लाशों का अंतिम संस्कार करती आ रहीं हैं जो कि लावारिस हैं अथवा जिन लाशों का अंतिम संस्कार उनका परिवार करने में सक्षम नहीं है। अब तक उन्होंने 2700 से भी ज्यादा लाशों का अंतिम संस्कार किया है। इसकी शुरुआत तब हुई जब एक रोज एक वृद्ध महिला ने अपने मृत बेटे का अंतिम संस्कार करने के लिए उनसे मदद मांगी। उस समय हीरा बाई ने शव के अंतिम संस्कार का जिम्मा उठाया और तब से वो इस सामाजिक कार्य में संलग्न हो गई।

हीराबाई को प्यार से लोग कहते हैं हीरा बुआ

सरकार भले ही उनके इस योगदान से अभी तक बेखबर है। लेकिन हीरा बुआ की लोकप्रियता पुराने भोपाल के अस्पतालों से लेकर पुलिस स्टेशनों तक फैली हुई है। लेकिन शुरुआती दिनों में उन्हें कई बार पुलिस से दो-चार होना पड़ता था। पूछताछ के संबंध में कई बार उन्हें थाने के चक्कर भी लगाने पड़े जिसके बाद उन्होंने यह निर्णय लिया कि वो सिर्फ उन्हीं लाशों को जलाएंगी जिनके परिवार से उन्हें सहमति पत्र प्राप्त हो। लावारिस लाशों को वो दफनाती हैं, ताकि जरूरत पड़ने पर उन्हें बाहर निकाला जा सके।

मजहब और जात से परे हैं हीरा बुआ

हीरा बाई इक्कीसवीं सदी की एक सशक्त महिला हैं, लेकिन उन्होंने बताया कि लोग उनके इस काम और उनके हरिजन होने की वजह से अब तक उनसे छुआछूत करते हैं। उन्होंने कहा कि,”आज जहां विश्व में लोग मंगल पर पांव जमाने की कोशिश में लगे हैं। वहीं हमारे पैर अभी भी जात पात की जंजीरों से बंधे हुए हैं। मैंने कभी लाशों से उनकी जात और मजहब नहीं पूछा। लोगों को समझना होगा कि इंसानियत इन सबसे ऊपर है।

सरकार हीराबाई के इस योगदान से है बेखबर

हीरा बुआ समाज के कई लोगों के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत तो है ही लेकिन उनके बेटे उन्हें अपनी सबसे बड़ी प्रेरणा मानते हैं। हीरा बुआ के बेटे की माने तो वह निरहुआ द्वारा चलाई जा रही इस प्रथा को आगे बढ़ाना चाहते हैं उन्होंने कहा कि हमें बहुत गर्व महसूस होता है जब हम अपनी मां को समाज सेवा करते देखते हैं। कई सामाजिक कार्यक्रमों में उनके इस नेक काम को लोगों के बीच सराहा गया है। उन्हें इसके लिए समाज सेवा सम्मान, समाज रत्न सम्मान, महिला गर्व सम्मान, अंबेडकर सेवा सम्मान आदि प्राप्त हुए हैं। लेकिन हीरा बाई इससे कहीं ज्यादा की हकदार हैं। मानव समाज के प्रति उनके इस योगदान की सराहना राष्ट्रीय अथवा वैश्विक स्तर पर होनी चाहिए। हीरा बाई भले ही अपना कार्यकाल खत्म होने के बाद हमीदिया से सेवा-निवृत्त हो जाएंगी। लेकिन इस काम को वो जीवन के अंतिम समय तक करते रहना चाहती हैं। वो कहती हैं कि, यही मेरी नारायण सेवा है। मैं इसे अपनी आखिरी सांस तक करूंगी।