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हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अल्केश जैन ने कहा,’ युवाओं में भी हृदय रोग बढ़ना चिंताजनक’

इंदौर। पहले यह माना जाता था कि हृदय रोग के वृद्ध लोग ही शिकार होते हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं रहा। खान-पान और बिगड़ी दिनचर्या के कारण युवा भी हृदय रोग से पीड़ित हो रहे हैं। हालात ये है कि 19-20 के युवाओं के ह्दय कमजोर होता जा रहा है। हाल ही में एक 19 वर्षीय युवक की एंजियोग्राफी की गई थी, उसे अटैक आया था और हार्ट की पम्पिंग 30 फीसदी ही रह गई थी। यह बात एसोसिएट डायरेक्टर कॉर्डियोलॉजिस्ट मेदांता हॉस्पिटल व ख्यात हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. अल्केश जैन ने कही। उन्होंने कहा कि हृदय रोग के सबसे ज्यादा पेशेंट आते हैं, उसमें प्रमुख कारण स्मोकिंग या तंबाकू का सेवन करने वाले होते हैं।

नसों में खून जम जाता है

डॉ. अल्केश जैन का कहना है कि स्मोकिंग और निकोटिन शरीर में जाता है, तो खून गाड़ा होकर हमारी नसों में जमने लगता है। इसी वजह से नसें ब्लॉक होती और अटैक आ जाता है। जब हम ऐसे पेशेंट की एन्जियोग्राफी करते हैं, तो क्लॉट नजर आते हैं।

साइलेंट अटैक और साइलेंट किलर

अटैक के दो टर्म होते हैं एक साइलेंट किलर होता है, जिसमें हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी होती है और मरीज को पता तक नहीं होता है कि उसे उच्च रक्त चाप की बीमारी है। कई बार बहुत दिक्कत आती है, तब सिस्टम में उसी समय पता चलता है कि सही प्राब्लम क्या है। इसमें पेरेलेसिस अटैक, हार्ट अटैक, हार्ट फेल होना, किडनी फेल होने के कारण पता चलता है, जो साइलेंट हार्ट अटैक में तब्दील हो जाते हैं। यदि मरीज को पहले हार्ट अटैक आता है, तो वह ईसीजी में पता चल जाता है। इसमें शगु पेशेंट का संभालना बहुत मुश्किल होता है। फिलहाल ग्रामीण क्षेत्रों से ज्यादा केस आ रहे हैं, जिनमें 10 से 12 प्रतिशत कॉर्डियोवस्कुलर डिजीज होते हैं।

जान जाने का खतरा अधिक

दो तरह के पेशेंट होते हैं, एक जो क्रोनिक पेशेंट है, जिन्हें पहले भी अटैक आ चुका हो और इलाज चल रहा है, पर सबसे ज्यादा एक्युट पेशेंट हैं, जिन्हें अटैक आया हो और जो गोल्डन टाइम पहला एक घंटा कहा जाता है। इसमें 40 से 45 प्रतिशत सडन कार्डियेक अटैक की रिस्क रहती है और 60 से 70 प्रतिशत ही इलाज के लिए डॉक्टर्स तक पहुंच पाते हंै करीब 30 प्रतिशत लोग ही अस्पताल तक पहुंच पाते हैं, इसलिए एमॉटीलिटी का प्रतिशत अधिक है।

जैनेटिक बीमारी भी

यदि परिवार में किसी को हृदय रोग रहा है, तो जैनेटिक भी आ सकती है। शुगर की बीमारी और धुम्रपान करते हैं, तो खतरा बना रहता है। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि युवा वर्ग आजकल व्यायाम नहीं करते हैं और खान-पान, पर्याप्त नींद नहीं होना, स्मोकिंग-तंबाकू के सेवन से खतरा बढ़ जाता है।

फल-सब्जी जरूर खाएं

जीवन शैली में डाइट में जंक फुड ना के बराबर लें। ताजे फल और हरी सब्जियों का सेवन अधिक से अधिक करना चाहिए। इनसे हमें एंटी आॅक्सीडेंट मिलते, बाहर की तली चीजें ना लें, बाहर का तेल टॉक्सिक होता है और सिंगल फ्राइड हो तो वह बेहतर होता है। नेचरल फुड लेना चाहिए और बहुत ज्यादा फेटी फुड ना ले और केलोरीज भी बर्न की जाना चाहिए। व्यायाम करें, पैदल चलें और साइकिल चलाना चाहिए।

इलाज महंगा पर मेडीक्लेम जरुर ले

नई-नई तकनीकी से इलाज होने के कारण मरीज को महंगा ट्रीटमेंट पड़ता है। ऐसे में मेडीक्लेम व इंश्योरेंस पॉलिसी लेना जरूर लेना चाहिए। डॉ. जैन ने बताया कि एक डॉक्टर के लिए काफी चैलेंज होता हंै, इसलिए फिट रहने के लिए हमारी कोशिश रहती है कि सप्ताह में तीन से चार दिन पैदल चलना, साइकिल चलाना और सीढ़ियों का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा किया जाए। हालांकि कोरोनाकाल में कई लोगों ने आॅफिस का काम घर से किया। इतना ही नहीं लॉकडाउन के चलते कई लोग डिप्रेशन और स्ट्रेस का भी शिकार हुए। ऐसे में उन्हें नियमित व्यायाम करने की सलाह दी गई थी।

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