बांदा। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि इंसानों के बने नियमों के आगे भगवान भी बेबस हो जाते है और उसके नियम-कायदों में उलझकर रह जाते हैं। ऐसा ही एक दिलचस्प वाकिया उत्तर प्रदेश के एक मंदिर का है, जहां पर भगवान का आधार कार्ड नहीं होने से उनका गेहूं नहीं बिक सका।
रामजानकी विराजमान मंदिर का मामला
भगवान का गेंहू ना बिकने का मामला उत्तर प्रदेश के बांदा का है। भगवान श्रीराम का गेहूं जरूरी कागताज के चक्कर में उलझ गया और सरकारी खरीद में बगैर बिका रह गया और मजबूरन मंदिर के पुजारियों को आढ़तियों को बेचना पड़ा। प्रदेशभर में गेहूं की सरकारी खरीद आधारकार्ड के जरिए संपन्न होती है। ऐसे् में रामजानकी विराजमान मंदिर की जमीन पर उपजे गेहूं को जब पुजारी ने बेचने की कोशिश की तो उनको दिक्कत आ गई। मंदिर के महंत ने सरकारी क्रय केंद्र में गेहूं बेचने के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था, लेकिन पंजीयन नहीं हो सका था। अधिकारियों ने भी इस मामले में अपनी विवशता जताते हुए हाथ खड़े कर दिए।
ऑनलाइन पंजीयन हुआ रद्द
रामजानकी विराजमान मंदिर के महंत रामकुमार दास के मुताबिक, मंदिर के नाम करीब सात हेक्टेअर जमीन है। बतौर संरक्षक कागजात में उनका नाम दर्ज है। इस बार 100 क्विंटल से ज्यादा गेहूं की फसल हुई थी। इस फसल को बेचने के लिए ऑनलाइन आवेदन किया तो पंजीयन रद्द कर दिया गया। इस संबंध में जब अधिकारियों से संपर्क किया तो आधारकार्ड की अनिवार्यता बताई गई। जिसके नाम जमीन, उसी का आधारकार्ड होना चाहिए था। भगवान के नाम जमीन होने से उनका आधारकार्ड असंभव है। मजबूरन फसल को आढ़तियों के हाथ बेचना पड़ा।
महंत ने जताई नाराजगी
महंत रामकुमार दास ने इस बात पर नाराजगी जताई और कहा कि सरकारी नियमों की वजह से उनको उपज कम भाव में बेचना पड़ी। सरकारी खरीद 1975 रुपए प्रति कुंतल है जबकि उनको आढ़तियों को 1700 प्रति कुंतल के हिसाब से बेचना पड़ी। इस तरह उनको 275 रुपए प्रति कुंतल का नुकसान हुआ है। महंत के अनुसार 61 कुंतल गेहूं आढ़तियों को बेचा गया, शेष मंदिर प्रांगण में साल भर की जरूरत के लिए रख गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि गेहूं उन्होंने एसडीएम की राय पर आढ़तियों को बेचा है।