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Ganesh Chaturthi 2021: श्रीगणेश को सिंदूर समर्पित करने से होते हैं विघ्नों के नाश, जानिए इसका शास्त्रोक्त महत्व

Ganesh Chaturthi 2021: श्री गणेश की भक्ति भक्तिभाव के विविध प्रकारों से की जाती है। गजानन भगवान की भक्ति में भक्त नाना प्रकार की वस्तुएं समर्पित करते हैं और गणेशजी अपने भक्तों से प्रसन्न होकर उनको सुख-समृद्धि का वरदान देते हैं। श्रीगणेश की भक्ति में सिंदूर समर्पित करने का विशेष शास्त्रोक्त महत्व है।

शिवपुराण में उल्लेख

सिंदूर को मंगल का प्रतीक माना जाता है और विघ्नहर्ता श्रीगणेश सिंदूर चढ़ाने से प्रसन्न होकर भक्तों की विघ्न-बाधाओं का नाश करते हैं। गणपति-गजानन को सिंदूर चढ़ाने के संदर्भ में शिवपुराण में एक श्लोक का वर्णन किया गया है।
आनने तव सिंदूरं दृश्यते साम्प्रतं यतदि।
तस्मात् त्वं पूजनीयो असि सिंदूरेण सदा नरै:।।

अर्थात जब महादेव ने गणेशजी का सिर काट दिया था और उसकी जगह पर हाथी का मस्तक लगाया जा रहा था तब उससे पहले उस स्तान पर सिंदूर का लेपन किया जा रहा था। उस समय माता पार्वती ने सिंदूर का लेपन होते देखकर श्रीगणेश से कहा था कि जिस सिंदूर से उनके मुख पर विलेपन हो रहा है भक्त सदैव इस सिंदूर से सदैव उनकी आराधना करेंगे। इसलिए भगवान गजनन को सिंदूर समर्पित किया जाता है।

गणेश पुराण में उल्लेख

गणेश पुराण में श्रीगणेश को सिंदूर चढ़ाने का उल्लेख मिलता है। इसके अनुसार

ममर्द सिंदूरं तं स कराभ्यां बलवत्तरं, ततस्तदसृजांगानि विलिलम्पारुणेन स:।
तत; सिंदूरवदन: सिंदूरप्रिय एव च, अभवज्जगतिख्यातो भक्तकामप्रपपूरक:।।

इस श्लोक के अनुसार बाल्यावस्था में श्रीगणेश ने सिंदूर नाम के दैत्य का वध अपने हाथों से किया था। इसके बाद दैत्य सिंदूर के रक्त का लेपन अपने शरीर पर कर लिया था। मान्यता है कि गणेशजी को सिंदूर लेपन की परंपरा रभी से प्रारंभ हुआ और गणपतिजी को सिंदूरवदन और सिंदूर प्रिय के नाम से भी जाना जाता है।

सर्वकार्यों में मिलती है सिद्धि

शास्त्रोक्त मान्यता है कि श्रीगणेश को सिंदूर चढ़ाने से समस्त कष्टों का नाश होता है और सर्वकार्यों में सफलता मिलती है। इसलिए शुभ कार्यों में सिंदूर का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। बुधवार और श्रीगणेश प्रिय चतुर्थी तिथि को गणेशजी को सिंदूर चढ़ाने का विशेष महत्व है। गणेशजी को सिंदूर चढ़ाते समय इस विशेष मंत्र का पाठन करना चाहिए।

सिन्दूरं शोभनं रक्तं सौभाग्यं सुखवर्धनम्।
शुभदं कामदं चैव सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्।।

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