नरसिंहगढ़। जाने-माने रामकथा वाचक फारुख रामायणी का निधन हो गया है। वे पिछले 35 सालों से रामकथा का वाचन कर रहे थे। मुस्लिम होने के बावजूद उन्होंने देशभर में रामायण पाठ कर अपनी अलग पहचान बनाई थी। फारुख रामायणी गीता और रामायण का वाचन कर 35 सालों से जनसाधारण को धार्मिक समरसता का संदेश दे रहे थे। गीता और रामायण का वाचन करने के लिए देश के कई मंचो पर उनका सम्मान किया गया था। फारुख रामायणी ने अपने जीवनकाल में 350 से अधिक स्थानों पर रामकथा का वाचन किया था। इसके साथ ही वो पांचों वक्त के नमाजी भी थे। प्रभु श्रीराम की कृपा उनके ऊपर थी और रानभक्त उनकी कथा का बड़ी बेसब्री से इंतजार करते थे।
30 से अधिक ब्राह्मण शिष्य हैं उनके
फारुख रामायणी हर दिन घंटों रामायण पाठ करते थे और वेद, गीता समेत तमाम ग्रंथों पर धाराप्रवाह बोलते थे। वे कर्म को कौम से ऊपर मानते हुए आम लोगों को धर्म का पाठ पढ़ाते थे। 30 से अधिक ब्राह्मण उनके शिष्य रहे हैं और 24 साल की उम्र में पहली बार उन्होंने राम कथा का वाचन किया था। फारुख रामायणी का जन्म नरसिंहगढ़ जिले के छोटे से गांव गुनियारी में अहमद खान के यहां हुआ था। छह साल की उम्र में उनका झुकाव रामायण और गीता जैसे धर्म ग्रंथों की ओर हुआ।
छह साल की उम्र में श्रीराम से हुआ लगाव
फारुख रामायणी को सुनने के लिए हजारों की भीड़ आती थी। हर दिन घंटों रामायण पाठ करते थे । वेद, गीता समेत तमाम ग्रंथों पर धाराप्रवाह बोलते थे, लेकिन कभी भी अपनी पांच बार की नमाज से नहीं चुकते थे कुछ लोगों ने विरोध भी किया। लेकिन फारुख रामायणी अपने कर्म को कौम से ऊपर मानते हुए आम लोगों को धर्म का पाठ पढ़ाते रहे। इसी का नतीजा है था कि अब तक देश के बीस से अधिक राज्यों में उन्हें राम कथा के लिये बुलाया जा चुका था और आज भी 30 से अधिक ब्राह्मण उनके शिष्य रहे हैं। मध्यप्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले के छोटे से गांव गुनियारी में अहमद खान के यहां जन्मे फारुख खान की उम्र मात्र छह वर्ष की थी जब रामायण और गीता जैसे धर्म ग्रंथों की ओर उनका झुकाव बढ़ा।
गुरू ने दिया था फारुख रामायणी का खिताब
गांव में होने वाली राम कथाओं में वे घंटों बैठते थे । गायत्री परिवार के किसी कार्यक्रम में गायत्री पीठ के संस्थापक सदस्य आचार्य श्री राम शर्मा ‘आचार्य’ का सम्मान देखकर उन्होंने ठान लिया कि जीवन में ऐसा ही कुछ बनना है। यहीं से उनके रामकथा वाचन के सफर की शुरुआत हुई जो उनके देहवसान तक जारी रही। 1984 में पहली बार उनको सार्वजनिक मंच पर राम कथा करने का मौका मिला था। राजगढ़ जिले के पचोर में फारुख रामायणी ने पहली राम कथा का वचन किया। पहली रामकथा के करीब 10 सालों बाद 1994 में उनके गुरु पं. लक्ष्मीनारायण शर्मा ने फारुख खान के धर्म ग्रंथ के ज्ञान को देखते हुए उन्हें ‘रामायणी’ के खिताब से नवाजा और फारुख खान की जगह फारुख रामायणी कहलाने लगे थे।