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Durva and Ganeshji: दूर्वा से शीघ्र प्रसन्न होते हैं श्रीगणेश और देते हैं मनचाहा वरदान

मृदुभाषी डेस्क। भगवान श्रीगणेश की आराधना में कई वस्तुओं का समावेश किया जाता है, जिससे भगवान गजानन प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों को मनचाहा आशीर्वाद प्रदान करते हैं। श्रीगणेश को कुछ विशेष भोग लगाए जाते हैं जिससे गणपति देव की कृपा उनके भक्त पर बनी रहती है। इसमें से एक दूर्वा है, जो श्रीगणेश को अतिप्रिय है।

श्रीगणेश को समर्पित करें 21 दूर्वा की गांठें

भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने और उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए कुमकुम, सिंदूर, अबीर, गुलाल, अक्षत आदि चढ़ाते हैं। जनेऊ धारण करवाकर उनको सुगंधित फूलों की माला समर्पित की जाती है। उनको लड्डू, मोदक, पंचामृत, पंचमेवा, पान, सुपारी, नारियल का भोग लगाया जाता है, लेकिन दूर्वा के बगैर श्रीगणेश की पूजा अधूरी मानी जाती है। दूर्वा गणपतिजी को अतिप्रिय है। श्रीगणेश को पूजा में 11 और 21 गांठें समर्पित करने का विधान है।

दूर्वा से हुई थी श्रीगणेश के पेट की जलन शांत

आखिर श्रीगणेश को दुर्वा क्यों इतनी प्रिय है इसके संबंध में शास्त्रों में एक कथा का वर्णन है। पौराणिक काल में अनलासुर नाम का एक ब्राह्मण था, जो ऋषि-मुनियों को निगल लेता था। उसके खौफ से चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। सभी संतों ने मिलकर गणेशजी से प्रार्थना की और इस समस्या के निवारण का निवेदन किया। इसके बाद भगवान गजानन अनलासुर के पास गए और उसको ही निगल लिया। अनलासुर के निगलने से श्रीगणेश के पेट में जलन होने लगी। गणेशजी के पेट की जलन शांत करने के लिए उनको कश्यप ऋषि ने 11 दूर्वाकुर खाने के लिए दी। इससे श्रीगणेश के पेट की जलन शांत हो गई। इसके बाद से ही गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए दूर्वा चढ़ाने की परंपरा प्रारंभ हो गई।

कोमल दूर्वा को कहा जाता है ‘बालतृणम’

श्रीगणेश को पूजा में हरी और सफेद दूर्वा चढ़ाने का विधान है। गणेशजी को समर्पित की जाने वाली दूर्वा कोमल होना चाहिए। ऐसी दूर्वा को ‘बालतृणम’ कहा जाता है। दूर्वा की पत्तियां हमेशा विषम संख्या में अर्थात 3,5,7 में अर्पित करना चाहिए।

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