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इस तरह जलाएं दीपक, मिटेंगे कष्ट, मिलेगी समृद्धि

Dharam: हिंदू धर्म परंपराएं शास्त्रोक्त विधानों के साथ पौराणिक काल से चली आ रही है। संस्कृति से जुड़े हुए इन संस्कारों से मानव को सुख-समृद्धि मिलती और मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। एक ऐसी ही परंपरा दीप प्रज्वलित करने की है। जिससे अधंकार का नाश होकर चारों ओर प्रकाश फैलता है। दीपक जलाने में तात्विक और वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है। दीपक को जलाए बगैर पूजा-उपासना अधूरी मानी जाती है।

ऋग्वेद से जुड़ी है परंपरा

दीपक जलाने की परंपरा को अग्नि की उत्पत्ति से भी जोड़ा जाता है। ऋग्वेद के अनुसार महर्षि अत्रि ने अग्नि की उत्पत्ति की थी। महर्षि पत्थरों को आपस में रगड़कर अग्नि को उत्पन्न करते थे। मान्यता है कि अग्नि की उत्पत्ति दीपावली के दिन हुई थी। इसलिए कहा जाता है कि ऋग्वेद से दीप जलाने की परंपरा शुरू हुई। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का उल्लेख वृहदारण्यक उपनिषद में किया गया है।

शुभता का होता है प्रसार

सनातन संस्कृति में किसी भी धार्मिक कर्मकांड को करने से पहले दीप जलाने की परंपरा है। मान्यता है कि दीप जलाने से शुभता की प्राप्ति होती है। नकारात्कता का नाश होता है और सकारात्मक ऊर्जा चारों और फैलती है। शास्त्रों में दीपक प्रज्वलित करने के कुछ खास नियम बतलाए गए हैं। इनका पालन करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

दीप प्रज्वलित करने के नियम

दीप हमेशा अखंडित होना चाहिए। खंडित दीपक से समस्याओं का सामना करना पड़ता है और उसके शुभ फल में कमी आती है। पूजा में जलाया गया दीपक बीच में बुझना नहीं चाहिए। ऐसा होने पर पूजा के पूर्ण फल की प्राप्ति नहीं होती है। देव साधना करते समय घी का दीपक बांयी तरफ और तेल का दीपक दांयी ओर प्रज्जवलित करना चाहिए। घी के दीपक में सफेद रुई की बत्ती और तेल की दीपक में लाल धागे की बत्ती लगाने का प्रावधान है। हालांकि इस संबंध में अलग-अलग नियम भी है।

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