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coronavirus: कोरोना पीड़ित के शवों के अंतिम संस्कार में 6-8 घंटे की वेटिंग, बड़े शहरों में हालत बदतर

coronavirus: कोरोना वायरस ने आम आदमी की जिंदगी के हर हिस्से को प्रभावित किया है। कोरोना का पता चलने के बाद अस्पताल में बेड से लेकर दवाईयों की जद्दोजहद और यदि इंसान इन सबके बावजूद अपने प्राण गंवा देता है तो ऐसे समय में उसको अंतिम संस्कार के लिए भी लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। कोरोना से मृत लोगों के अंतिम संस्कार में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। श्मशान घाट में शवों के अंतिम संस्कार के लिए लंबी वेटिंग चल रही है। देश के बड़े शहरों में हालत काफी खराब है।

बड़े शहरों में अंतिम संस्कार की चल रही है वेटिंग

लखनऊ और सूरत के आंकड़े काफी डराने वाले हैं। कोरोना के बढ़ते संक्रमण से मरने वालों की संख्या में इजाफा होने से विद्युत शवदाह गृहों पर अंतिम संस्कार की कतार भी लम्बी होती जा रही है। गुरुवार को रात नौ बजे तक लखनऊ में 38 शवों का अंतिम संस्कार हुआ। इसमें 18 बैकुंठ धाम और 20 गुलाला घाट पर दाह संस्कार हए। इस दौरान लोगों को अंतिम संस्कार के लिए लम्बा इंतजार करना पड़ा। लोगों को इसके लिए पांच से छह घंटे तक लाइन में खड़े होकर इंतजार करना पड़ा।

विद्युत शवदाह गृह में हो रहा है अंतिम संस्कार

दोनों विद्युत शवदाह गृहों पर सुबह से ही कोरोना के शवों का पहुंचना शुरू हो गया था। दोपहर एक बजे तक 12 शव पहुंच चुके थे। इसमें से सिर्फ तीन का हीअंतिम संस्कार हो सका था। यहां पर लोगों को अंतिम संस्कार के लिए टोकन दिया जा रहा था। एक शव के अंतिम संस्कार में एक से डेढ़ घंटे का समय लगता है। लगभग एक घंटे शव को जलने में और 15-20 मिनट सेनेटाइज करने में लगता है।श्मशानघाट में दो मशीनें हैं। लेकिन एक मशीन दो दिन से खराब हो गई थी।

यहां पर लगी हुई मशीन लगभग 35 वर्ष पुरानी हो चुकी है। उसे गुरुवार की शाम तक ठीक किया जा सका। रात नौ बजे तक यहां पर 18 शवों का अंतिम संस्कारहो चुका था। बुधवार रातभर अंतिम संस्कार की प्रक्रिया चलती रही जो गुरुवार को सुबह चार बजे तक जारी रही। बैकुंठ धाम के कर्मचारियों का कहना है कि गुरुवार को भी यही स्थिति रहेगी। यहां पर रातभर अंतिम संस्कार होता रहेगा। उधर गुलाला घाट पर भी लोगों को नम्बर दिया गया था। यहां पर भी देर रात तक 20 शवों का अंतिम संस्कार किया गया।

कर्मचारियों की जिंदगी दांव पर

दोनों विद्युत शवदाह गृहों पर काम कर रहे कर्मचारियों कीे जीवन को भी खतरा है। कर्मचारी बगैर पीपीई किट के शवों को एम्बुलेंस से उतार रहे हैं और उनका अंतिम संस्कार कर रहे हैं। एक शव के अंतिम संस्कार में चार कर्मचारी लगते हैं। इस तरह से चार पीपीई किट की जरूरत होती है। लेकिन नगर निगम दोनों स्थानों पर मिलाकर 60-70 पीपीई किट उपलब्ध करा पा रहा है। जबकि इस समय में प्रतिदिन लगभग 200 पीपीई किट की जरूरत है। मास्क व ग्लब्स भी नहीं है। कर्मचारियों को धोकर काम चलाना पड़ रहा है।

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