मुरादाबाद। जिन्ना को लेकर दिए गए अपने बयान पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर चौतरफा हमला हुआ है। जिन्ना के महिमामंडन औऱ उनकी सरदार पटेल से तुलना की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी औऱ बसपा सुप्रीमो मायावती ने शर्मनाक बताते हुए उनको इतिहास की सलाह दी है।
ओवैसी की अखिलेश को इतिहास पढ़ने की सलाह
एआईएमआईएम प्रमुख ओवैसी ने कहा, “यदि अखिलेश यादव सोचते हैं कि इस तरह के बयान देकर वह लोगों के एक वर्ग को खुश कर सकते हैं, तो मुझे लगता है कि वह गलत हैं। उन्हें अपने सलाहकारों को बदलना चाहिए। उन्हें खुद को शिक्षित करना चाहिए और कुछ इतिहास भी पढ़ना चाहिए। अखिलेश यादव को यह समझना चाहिए कि भारतीय मुसलमानों का मुहम्मद अली जिन्ना से कोई लेना-देना नहीं है। हमारे बुजुर्गों ने द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को खारिज कर दिया था और भारत को अपने देश के रूप में चुना था।”
सीएम योगी ने बताया तालिबानी सोच
वहीं सोमवार को मुरादाबाद पहुंचे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अखिलेश यादव पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव की सोच तालिबानी है। योगी ने कहा- मैंने अखिलेश का भाषण सुना। वे राष्ट्र को जोड़ने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल की तुलना देश तोड़ने वाले जिन्ना से कर रहे थे। यह बेहद शर्मनाक है। अखिलेश यादव को देश से माफी मांगनी चाहिए। दरअसल, अखिलेश यादव ने रविवार को हरदोई में सरदार पटेल की तुलना जिन्ना से कर दी थी। उन्होंने कहा था कि सरदार पटेल, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और जिन्ना एक ही संस्था में पढ़कर बैरिस्टर बनकर आए थे। एक ही जगह पढ़ाई-लिखाई की। वह बैरिस्टर बने और उन्होंने आजादी दिलाई।
सरदार पटेल का अपमान स्वीकार नहीं
मुरादाबाद में सीएम योगी ने कहा कि पूरा देश सरदार पटेल को लौह पुरुष मानता है। ऐसे समय में अखिलेश की सोच फिर से सामने आई है। उन्होंने देश को तोड़ने वाले जिन्ना को देश को जोड़ने वाले सरदार पटेल के समकक्ष रख दिया है। ये सोच हमेशा तोड़ने में विश्वास रखती है। पहले इन्होंने समाज को जाति के नाम पर तोड़ने की साजिशें रचीं, मंसूबे पूरे नहीं हुए तो महापुरुषों पर लांछन लगाकर पूरे समाज को अपमानित करने का प्रयास किया जा रहा है।
मायवती ने कहा चुनावी रणनीति
बसपा प्रमुख मायावती ने इस मामले में अखिलेश यादव औऱ भाजपा दोनों पर निशाना साधते हुए कहा कि अखिलेश यादव की टिप्पणी और भाजपा की प्रतिक्रिया दोनों दलों की उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले मतदाताओं का ध्रुवीकरण करने की रणनीति का हिस्सा है। इन दोनों पार्टियों की सोच जातिवादी और सांप्रदायिक है और दोनों पार्टियां अपने अस्तित्व के लिए एक-दूसरे पर निर्भर हैं।