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बच्चे बन गए बैल, आर्थिक हालात खराब होने से हल जोत कर रहे हैं खेती

बच्चों की पिता की मृत्यु 11 साल पहले हो चुकी है।

आष्टा: देश-प्रदेश में किसानों की खुशहाली के नाम पर अरबों रुपया खर्च किया जा रहा है और उनकी ज्यादातर जरूरतों का खास ख्याल रखने का दावा किया जा रहा है, लेकिन इसके बावजूद देश में कई किसानों के परिवार ऐसे हैं जिनको खेत जोतने से लेकर दो जून की रोटी तक के लिए कड़ी मशक्कत करना पड़ती है। ऐसा ही एक मामला सामने आया है मध्य प्रदेश के आष्टा से, जहां बैल ना होने से दो बच्चे बैल की जगह हल चलाकर अपने खेत को जोत रहे हैं।

बच्चे बन गए बैल

देश अंतरिक्ष की गहराईयों की थाह लेने में लगा हुआ है। खेतों में परंपरागत खेती की जगह यंत्रों ने ले ली है और अब भरपूर अन्न से किसान के खेत-खलिहान सराबोर हो रहे हैं, लेकिन इसके बावजूद देश में कई किसान जरूरी संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। ऐसी ही एक मामला आष्टा में सिद्धि गंज के नजदीक नानकपुर गांव से सामने आया है जहां पर दो बच्चे बैल ना होने से उनकी जगह पर हल को खींच रहे हैं। गरीब परिवार के इन बच्चों के पास बैल लाने के पैसे नहीं है। इस वजह से इस छोटी उम्र में वह ये तकलीफभरा काम करने के लिए मजदूर है।

सोयाबीन बीज खरीद के लिए भी नहीं है पैसे

नानकपुर के रहने वाले शैलेंद्र कुशवाहा ने बताया कि उनके पिताजी सागर कुशवाहा की मौत 30 साल की उम्र में हो गई थी उनकी मृत्यु को 11 साल गुजर चुके हैं तब से ही मेरे ऊपर परिवार पालन पोषण की जिम्मेदारी आ गई थी। मेरी मां उर्मिला कुशवाह मजदूरी कर परिवार का गुजारा करती है। मेरी दो बहने हैं नेहा और नैनची कुशवाहा है जिनकी उम्र। 16 और 15 साल है। हमारा मकान भी कच्चा बना हुआ है और हमारे पास सिर्फ 4 एकड़ जमीन है जिसके लिए सोयाबीन और बैल खरीदने के पैसे नहीं है इसलिए तीनो भाई बहन खेत में सब्जी लगाने के लिए खेत तैयार करने में जुट गए। और ऐसा हमने कई बार किया है। कोई हमारी मदद भी नहीं करता है जिससे कि हम हमारे खेत तैयार कर सके, बेल खरीद सके और सोयाबीन बीज खरीद सकें। इस तरह से पैसे और जरूरी संसाधनों के अभाव में हम लोगों को घर चलाने में दिक्कतों कैा सामना करना पड़ता है।