Char Dham Yatra 2021: उत्तराखंड के चारधाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के पट खुलने में अब कुछ सह समय शेष है। ऐसे में देवभूमी में इससे पहले होने वाली रस्में प्रारंभ हो गई है। इसी कड़ी में गुरुवार को भगवान बद्रीनाथ के लिए तिलों का तेल पिरोया गया।
तिलों का तेल पिरोने की हुई रस्म
चारधाम के पट खुलने से पहले कई तरह की रस्मों का निर्वाह किया जाता है। इसमें एक प्रमुख और प्राचीन रस्म तिलों का तेल पिरोने की है। भगवान बदरी विशाल के अभिषेक के लिए इस तेल को पिरोया जाता है। नरेन्द्रनगर राजमहल में महारानी राज्य लक्ष्मी शाह की अगुवाई में नगर की सुहागिन महिलाओं ने व्रत रखकर इस तेल को पिरोति है। इस अवसर पर राजमहल में उत्सवी माहौल था और महल को सुगंधित रंग-बिरंगे फूलों से सजाया गया था।
महिलाओं ने व्रत रखकर पिरोया तेल
राजवंश के राजपुरोहित संपूर्णानंद जोशी और पंडित आचार्य कृष्ण प्रसाद उनियाल ने विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना कर भगवान बदरीनाथ के अभिषेक के लिए तिलों का तेल पिरोने का महारानी राज्य लक्ष्मी शाह के हाथों से शुभारंभ करवाया। इसके बाद सुहागिन महिलाओं ने व्रत रखते हुए पीले वस्त्र पहनकर मूसल-ओखली और सिल-बट्टे से तिलों का तेल पिरोया। कोरोना प्रोटोकॉल के तहत परंपरा में सोशल डिस्टेंसिंग का खास ख्याल रखा गया। तेल पिरोने के बाद राजपुरोहित संपूर्णानंद जोशी के नेतृत्व में तिलों के तेल को एक विशेष बर्तन में दुर्लभ जड़ी-बूटी के साथ आग में पकाया गया, ताकि तेल में से जल पूरी तरह से अलग हो जाए।
छह माह तक होता है इस तेल से अभिषेक
तिल का यह तेल भगवान बद्री विशाल के अभिषेक के लिए छह माह तक प्रयुक्त होता है। तेल को शुद्ध करने के बाद एक कलश में मंत्रोच्चार के साथ भर दिया गया। इस परंपरा को गाडूघड़ा कहा जाता है। डिमर समुदाय के सरोलों के द्वारा तैयार किया गया भोग तेल कलश पर चढ़ाने और पूजन के बाद महाराजा मनुजेंद्र शाह और महारानी राज्य लक्ष्मी शाह को प्रसाद स्वरूप खिलाकर उनका व्रत तोड़ा गया। तेल पिरोने आई सुहागिन महिलाओं और छोटी कन्याओं को भी प्रसाद स्वरूप भोग दिया गया।