नई दिल्ली। केंद्र ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि सरकार संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (ए) के तहत देशद्रोह कानून में बदलाव ला सकती है। शीर्ष अदालत देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। शीर्ष अदालत ने देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली कुछ याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस भी जारी किया। भारत के मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित के नेतृत्व वाली शीर्ष अदालत ने जनवरी के दूसरे सप्ताह में सुनवाई के लिए देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले मामलों को सुनवाई की तारीख आगे बढ़ा दी।
मुख्य न्यायाधीश उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ को अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि केंद्र को कुछ और समय दिया जाए क्योंकि संसद के शीतकालीन सत्र में कुछ हो सकता है। वेंकटरमणि ने कहा कि यह मुद्दा संबंधित अधिकारियों के विचाराधीन है और इसके अलावा 11 मई के अंतरिम आदेश के मद्देनजर चिंता का कोई कारण नहीं है, जिसने प्रावधान के उपयोग को रोक दिया था। अटॉर्नी जनरल वेंकटरमणि ने कहा कि इस अदालत द्वारा 11 मई, 2022 के आदेश में जारी निर्देशों के संदर्भ में मामला अभी भी संबंधित अधिकारियों के ध्यानार्थ है। उन्होंने अनुरोध किया कि कुछ अतिरिक्त समय दिया जाए ताकि सरकार उचित कदम उठा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, आरोपी जा सकते हैं अदालत
भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए देशद्रोह को अपराध बनाती है। इससे पहले मई में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि जब तक सरकार इसकी समीक्षा नहीं करती और जेल में बंद लोग जमानत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं, तब तक विवादास्पद देशद्रोह कानून पर रोक रहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए, जो देशद्रोह के अपराध को अपराध बनाती है, उसे तब तक स्थगित रखा जाए जब तक कि सरकार द्वारा कानून की समीक्षा करने की कवायद पूरी नहीं हो जाती।
धारा 124 ए के तहत मामले दर्ज करने पर लगी है रोक
भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमण, जस्टिस सूर्यकांत और हेमा कोहली की पीठ ने केंद्र सरकार और राज्यों से धारा 124 ए के तहत कोई भी मामला दर्ज नहीं करने को कहा था। पीठ ने कहा कि अगर भविष्य में ऐसे मामले दर्ज किए जाते हैं, तो पक्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं और अदालत को इसका तेजी से निपटान करना होगा। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि जिन लोगों पर पहले से ही आईपीसी की धारा 124ए के तहत मामला दर्ज है और वे जेल में हैं, वे जमानत के लिए संबंधित अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं। पीठ ने आदेश दिया था कि प्रावधान को स्थगित करना उचित होगा। केंद्र सरकार को धारा 124ए के प्रावधानों की फिर से जांच करने और पुनर्विचार करने की अनुमति देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि जब तक आगे की जांच पूरी नहीं हो जाती तब तक कानून के प्रावधान का इस्तेमाल नहीं करना उचित होगा।