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इन चार श्रापों के कारण ब्रह्माजी की पूजा नहीं होती है

Dharam: जगतपिता ब्रह्माजी को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है। त्रिदेवों में उनको प्रथम स्थान प्राप्त है, लेकिन कैलाशपति शिव और भगवान विष्णु की तरह ब्रह्माजी की पूजा ब्रह्माण्ड में कहीं भी नहीं की जाती है। शास्त्रों में इसके विशेष कारण बतलाए गए हैं।

सावित्री ने दिया था ब्रह्मा को श्राप

पुष्कर में ब्रह्माजी ने एक यज्ञ का आयोजन किया था। उस समय उनकी अर्द्धांगिनी सावित्री निर्धारित समय पर यज्ञस्थल पर नहीं पहुंच पाई। यज्ञ का शुभ समय न निकल जाए इसलिए उन्होंने देवी गायत्री से विवाह कर लिया और यज्ञ का अनुष्ठान प्रारंभ कर दिया। सावित्री जब यज्ञस्थल पर पहुंची तो अपनी जगह पर गायत्री को देखकर क्रोधित हो गई और ब्रह्माजी को श्राप दे दिया कि पृथ्वीलोक में कहीं पर भी आपकी पूजा नहीं होगी। देवताओं ने जब उनसे निवेदन किया तो उन्होंने कहा कि सिर्फ पुष्कर में आपकी पूजा होगी।

अप्सरा मोहिनी ने दिया था ब्रह्मा को श्राप

एक बार ब्रह्माजी के रूप पर अप्सरा मोहिनी कामासक्त हो गई। वह ब्रह्माजी के समीप आसन लगाकर बैठ गई। ब्रह्माजी की जब तंद्रा टूटी और उन्होंने इसका कारण पूछा, तो मोहिनी ने कहा कि मैं आपके प्रेमपाश में बंध चुकी हूं और आप मेरा प्रेम स्वीकार करें और मोहिनी अपनी अदाओं से उनको रिझाने लगी। ऐसे में ब्रह्माजी श्रीहरी को याद करने लगे। तभी सप्तऋषियों का ब्रह्मलोक में आगमन हुआ। उन्होंने मोहिनी के वहां पर उपस्थित होने का कारण पूछा तो ब्रह्माजी ने कहा कि ये अप्सरा नृत्य करते हुए थक गई है और पुत्री भाव से मेरे समीप बैठी हुई है। मोहिनी यह जानकर क्रोधित हो गई और कहा कि आपने मेरे प्रेम को ठुकराया है आपको अपने संयम पर बहुत घमंड है इसलिए मैं आपको श्राप देती हूं कि इस जगत में आपकी कोई पूजा नहीं करेगा।

शिवजी ने दिया था ब्रह्मा को श्राप

एक बार ब्रह्मा और विष्णु में श्रेष्ठता को लेकर युद्ध छिड़ गया. जब महादेव को इसका पता चला तो उन्होंने विशाल अग्निस्तंभ का रूप ले लिया और दोनों से इसका सिरा तलाशने को कहा, जो सिरा तलाशेगा वही श्रेष्ठ माना जाएगा। ब्रह्माजी ने शिवजी से सिरा तलाशने की असत्य कहानी बताई। तब शिवजी ने क्रोधित होकर जगत में कहीं पर भी उनकी पूजा न होने का श्राप दे दिया. शिवपुराण की एक कथा के अनुसार ब्रह्माजी ने सत्यभामा नाम की कन्या की उत्पत्ति की थी, किंतु वह उसके रूप पर मोहित हो गए और उन्होंने सत्यभामा से विवाह की इच्छा जताई। शिवजी ने ब्रह्माजी को समझाया की आपसे उत्पन्न होने के कारण वह आपकी पुत्री समान है। फिर भी जब ब्रह्मा नहीं माने तो महादेव ने उनको श्राप दिया कि आपने पिता-पुत्री के रिश्ते का अपमान किया है इसलिए आप अब पूजनीय नहीं रहेंगे।

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