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Bengal Election: ‘एम’ ‘वाय’ समीकरण ने भाजपा की उम्मीदों पर इस तरह फेर दिया पानी, जाने बंगाल चुनाव के अंदर की बात

Bengal Election: पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा की सत्ता पर काबिज होने की हसरतें पूरी नहीं हुई। अपनी पूरी ताकत झोंक देने और लंबे समय तक समीकरण बनाकर योजनाबद्ध तरीके से चुनाव लड़ने के बावजूद भाजपा उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाई। अब इस बात पर विश्लेषण हो रहा है कि आखिर नजदीक पहुंचकर कैसे भाजपा सत्ता से दूर रह गई।

एम वाय समीकरण से पाई सत्ता

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा को सबसे ज्यादा भरोसा महिलाओं और युवाओं पर था। लेकिन भाजपा को दोनों का उतना समर्थन नहीं मिला, जिससे कि वह सरकार बनाने के नजदीक पहुंच सके। इसके विपरीत ममता बनर्जी को इन दोनों का खासा समर्थन मिला। पश्चिम बंगाल में एम-वाई यानी महिला और युवा पर भाजपा ने सबसे ज्यादा दांव लगा रखा था, लेकिन नतीजे भाजपा के गणित के अनुरूप नहीं रहे। चुनाव प्रचार और नतीजे पर यदि गौर करें तो बंगाल चुनाव में छह ‘एम’ और एक ‘वाई’ फैक्टर का प्रभाव रहा। ये हैं मोदी, ममता, मुस्लिम, महिला, मध्यम वर्ग, मतुआ और युवा।

बंगाली अस्मिता का नारा आया काम

मोदी के वर्चस्व और ममता का बंगाली अस्मिता का नारा प्रमुख था। मुस्लिम समुदाय की भाजपा से दूरी बनी रहती है। मध्यम वर्ग अपने नफे-नुकसान से वोट डालता है, लेकिन महिला और युवा वर्ग ने अधिकांश मौकों पर भाजपा का साथ दिया और केंद्र से लेकर कई राज्यों तक में भाजपा की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई है, लेकिन ममता की योजनाओं के आगे भाजपा के वादों ने दम तोड़ दिया। ममता की सरकार ने बंगाल में सबूज साथी, मां किचन, दवरे सरकार जैसी गरीब कल्याणकारी योजनाएं चलाई, जिसका फायदा उसको मिला। बंगाल की बेटी का नारा महिलाओं को प्रभावित कर गया। इस तरह से भाजपा की मेहनत बेकार हो गई और ममता बंगाल में बाजी मार गई।

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