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Atal Bihari Vajpayee Birthday: सियासी जंग में विपक्ष भी था जिनका मुरीद

Atal Bihari Vajpayee: भारतीय राजनीति के कद्दावर राजनेता अटल बिहारी वाजपेयी की शख्सित का हर कोई कायल था और उनके भाषण देने की शैली के पक्ष से लेकर विपक्ष तक हर राजनेता मुरीद थे। इसी वजह से उनको दुनिया की सबसे बड़ी जम्हूरियत का अजातशत्रु कहा जाता था। आज देश उनका 96 वां जन्मदिन मना रहा है।

विपक्ष भी था उनका कायल

जब वो संसद में खड़े होकर अपनी बात रखते थे, तो संसद में खामोशी छा जाती थी। सभी राजनेता उनके भाषण का लुत्फ उठाना चाहते थे और अटलजी के तीखे, कटाक्षभरे, दिल की गहराइयों तक उतर जाने वाले शब्दबाणों से घायल होना भी पसंद करते थे। उनके भाषण पर विपक्ष प्रहार करता भी था, लेकिन भारतीय राजनीति के विराट स्वरूप के आगे विपक्षी खेमे की आवाज नक्कारखाने में तूती के समान बनकर रह जाती थी।

9 बार लोकसभा और 2 बार राज्यसभा के बने सदस्य

हिंदुस्तान के लोकतंत्र में आदर्शवाद की राजनीति करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ था। कृतघ्न राष्ट्र आज उनकी 96वीं जयंती मना रहा है। अपनी बोली से प्रतिद्ंदी को मात देने वाले अटलजी जब पहली बार भाषण देने के लिए खड़े हुए थे तो लड़खड़ा गए थे और उनको भाषण बीच में छोड़ना पड़ा था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और राजनीति में सफलता के सोपान चढ़ते चले गए।1955 में पहली बार उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा, लेकिन उनके हाथ असफलता लगी। 1957 में उनको पार्टी ने मथुरा, बलरामपुर और लखनऊ तीन जगहों से चुनाव लड़वाया, लेकिन मथुरा और लखनऊ से वो हार गए और बलरामपुर से जीतकर पहली बार लोकसभा में पहुंचे। इसके बाद वो 9 बार लोकसभा और 2 बार राज्यसभा के लिए चुने गए। 1968 से 1973 तक वो जनसंघ के अध्यक्ष रहे। 1977 से 1979 तक अटलजी मोरारजी देसाई की सरकार में विदेश मंत्री रहे। 1980 में जब भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई तो वो 6 अप्रैल 1980 को इसके अध्यक्ष बनाए गए।अपनी जीवटता को वो कविताओं के माध्यम से भी बयां करते थे।

बाधाएं आती हैं आएं,
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पांवों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।’

कारगिल में जीती थी जंग

अटल बिहारी वाजपेयी तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने। पहली बार 1996 में उन्होंने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन बहुमत न होने की वजह से सिर्फ तेरह दिनों में उनको पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद 1998 में सहयोगी दलों के सहयोग से वो प्रधानमंत्री बने और यह सरकार तेरह महीने तक चली। जयललिता के समर्थन वापस लेने से उनकी सरकार सिर्फ एक वोट से गिर गई। 199 में वो फि9र से सत्ता में आए और इस बार 2004 तक अटलजी ने अपना कार्यकाल पूरा किया। अपने कार्यकाल में अटलजी ने कई इतिहास रचने वाले फैसले लिए, इनमें से एक पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाना था, लेकिन जब कारगिल की जंग छेड़कर पाकिस्तान ने पीठ में छुरा घोंपा तो उसको बर्फीली चोटियों पर करारी शिकस्त दी थी। 2004 में सत्ता गंवाने के बाद वो सक्रिय राजनीति से दूर हो गए और बाद में गिरते स्वास्थ्य के कारण उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया था। आज भी भारतीय राजनीति में उनके विचार प्रासंगिक बने हुए हैं। 16 अगस्त 2018 को 93 साल की उम्र में उनका देहवसान हुआ।

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