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Atal Bihari Vajpayee: 20 साल पहले उपहार देने वाले को हजारों के बीच पहचान लिया था

इंदौर। अटल बिहारी बाजपेयी को भारतीय राजनीति का अजातशत्रु और कालजयी नेता कहा जाता है। राजनीति को उन्होंने जनसेवा का जरिया बनाया और जनता के दिल पर लंबे समय तक राज किया। पक्ष और विपक्ष दोनों ही खेमों में उनको बराबर सम्मान मिलता था। आज उनका जन्मदिन है। आइए बात करते हैं उनसे जुड़े एक दिलचस्प किस्से कि।

संघ प्रचारक बनकर आए थे तराना

अटल बिहारी बाजपेयी का ग्वालियर के अलावा मालवा प्रांत से गहरा नाता रहा था। उनके पिताजी उज्जैन के पास बड़नगर में हेडमास्टर थे और जिंदगी का पहला भाषण उन्होंने यहीं पर दिया था, लेकिन बीच में लड़खड़ाने की वजह से भाषण को बीच में छोड़ना पड़ा था। उनसे जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा उज्जैन के पास तराना का है। यह बात उन दिनों की है जब अटलजी संघ के प्रचारक थे और और प्रचार के सिलसिले में प्रचारक बनकर सन 1960 में उज्जैन के पास तराना कस्बे में आए थे। उस समय वो प्राचीन द्वारकाधीश मंदिर जिसको कुंड का द्वारकाधीश मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, वहां पर ठहरे थे। वहां पर वह मदनलाल रेटीवाले के आमंत्रण पर उनके घर भोजन के लिए पहुंचे। उनके यहां पर जब वह स्नान के लिए बाथरुम में गए तो अपनी धोती उतार कर बाहर खूंटी पर टांग दी। मदनलालजी ने जब अटलजी की धोती को देखा तो वह कई जगहों से फट गई थी और काफी खस्ता हालत में थी। उन्होंने उस समय अटलजी के लिए पुरानी की जगह नई धोती रख दी।

अटलजी ने रखी सिर्फ एक धोती

अटलजी जब स्नान कर बाहर निकले तो उन्होने पुरानी फटी हुई धोती के बारे में पूछा। तब मदनलालजी ने कहा कि आपकी धोती फट गई थी इसलिए उसकी जगह मैने नई धोती आपको लाकर दी है। उसके बाज जब वो भोजन के बाद जाने लगे तो उनको झोला कुछ भारी लगने लगा। उन्होंने देखा कि उसमें एक और धोती रखी हुई है अटलजी ने मदनलालजी से पूछा कि ये किसलिए? मदनलालजी ने कहा ये भी आपके लिए है। तब अटलजी ने दूसरी धोती को वापस लौटाते हुए कहा कि मुझे फिलहाल सिर्फ एक धोती की जरूरत है और यदि जरूरत हुई तो दूसरी धोती की व्यवस्था कहीं ओर से हो जाएगी।

मंच पर पहचाना मदलालजी रेटीवाले को

20 साल बाद जब सत्यनारायण जटिया का प्रचार करने के लिए वह उज्जैन आए तो मदलालजी रेटीवाले उनको मंच पर हार पहनाने के लिए गए। अटलजी ने तुरंत पहचान लिया और कहा कि आप वही एवन ब्रांड धोती वाले मदनलालजी हो न। इस तरह अटलजी अपने गुमनामी के दिनों को शोहरत मिलने के बाद भी नहीं भूले।

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