धार। जहा एक ओर प्रदेश में शराब ठेकों को लेकर होड़ मची हुई है तो दूसरी ओर धार जिले में शराब ठेका लेने के लिए ठेकेदारों कोसो दूर नजर आ रहे हैं लेकिन इस बार हालात इसके उलट देखने को मिल रहे है। इसकी वजह तो फिलहाल सामने नहीं आई है। लेकिन मार्च के शुरूअीत पखवाड़े में बुलाई गई शराब ठेका के नवीनीकरण और ओपन लॉटरी में एक भी समूह ने भाग नहीं लिया है। ऐसे में रिनुअल से आबकारी विभाग को मिलने वाले 113 करोड़ रुपए इस बार हाथ से फिसल गए है। इतना ही नहीं 377 करोड़ की ओपन लॉटरी में भी ठेकेदारों की दूरियां विभाग के लिए ठीक नहीं मानी जा रही है। ऐसे में यह तय है कि अब 113 करोड़ रुपए का शुद्ध नुकसान तो आबकारी को झेलना ही है। वहीं शराब दुकानों की बेस प्राइज से भी अब समझौता करना पड़ सकता है।
शराब दुकानों के रिनुअल और लाइसेंस ठेका के लिए हर साल मार्च में ठेका होता है। इसके बदले आबकारी विभाग को करोड़ों रुपए का राजस्व प्राप्त होता है। लेकिन इस बार आबकारी को इस मोटे राजस्व से हाथ धोना पड़ा है। पहला नुकसान आबकारी को 113 करोड़ रुपए का हुआ है। 3 मार्च तक प्रस्तावित शराब दुकानों के नवीनीकरण की प्रक्रिया में एक भी समूह की दुकान रिनुअल नहीं हुई है। इस कारण अब नए सिरे से दोबारा दुकानों की नालामी की प्रक्रिया होना है।
ठेकेदारों में रहती थी होड़
धार जिले में शराब ठेका पाने के लिए ठेकेदारों में होड़ मची रहती थी। गुजरात से सीधा जुड़ाव होने के कारण बड़े शराब ठेकेदारा और समूह सक्रिय रहे है। लेकिन इस बार धार से ठेकेदारों का मोहभंग किसी के भी समझ नहीं आ रहा है। इसमें अफसरों के भाव ज्यादा है या फिर शराब दुकानों के रेट अब नए ठेके होने के बाद ही साफ होने की उम्मीद है। तब तक ठेकेदारों का इंतजार ही करना होगा।
अब शराब दुकानों के बुलाए टेंडर
शराब दुकानों के अलाटमेंट की प्रक्रिया पर पानी फिरने के बाद अब अंतिम ई-टेंडर जारी करने की तैयारी की जा रही है। आबकारी सभी 10 समूहों में आ रही 84 दुकानों के ई-टेंडर जारी कर रही है। यह टेंडर 14 मार्च को जारी होंगे। जबकि 17 मार्च को टेंडर ओपन होंगे। यह टेंडर प्रक्रिया धार जिले में शराब ठेकों का भविष्य तय करेगी।
सींडिकेट ने भी बनाई दूरियां
बीते दो साल से धार जिले में एक ही सींडिकेट बनाकर शराब व्यावसाय का पूरा कारोबार संचालित हो रहा है। लेकिन इस बार के ठेके में शराब सींडिकेट ने भी दूरियां बनाई है। इसकी वजह तो सामने नहीं आई है। लेकिन इससे साफ यह है कि इस बार के ठेकों में आबकारी विभाग को मिलने वाले सालाना राजस्व से काफी ज्यादा हाथ धोना पड़ सकता है। लेकिन इस नुकसान की भरपाई अफसर किस तरह करते है यह देखने वाली बात हैै।
ये साल है चुनावी
एक बात यह भी सामने आई है क्योंकि इसवर्ष विधनसभा चुनाव होना है इसलिए भी ठेकेदार दुकाने लेने में अपनी रुचि नही दिखाए है चुनाव साल होने से भी आबकारी विभाग को इस बार दुकाने रिनुअल करवाने में पसीने छूट गए है और ठेकेदार भी दुकाने लेने में आगे नही आ रहे है।दूसरा कारण नई शराब नीति के कारण इसका प्रभाव ठेको पर देखने को मिलेगा क्योकि वही वितीय वर्ष खत्म होने में 17 दिन शेष बचा है। वही जिले की एक भी दुकाने नही गई है। आने वाले दिनों में देखते विभाग क्या करता है जिसे राजस्व प्राप्त करने में कहा तक सफलता पा सकेगा।