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कोरोना में मृत परिजनों की अपनों ने नहीं ली सुद, अस्थियों को है मोक्ष का इंतजार

इंदौर। किसी अपने की अस्थियां पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ विसर्जित की जाती हैं, लेकिन कोरोना काल में इन अस्थियों के प्रति भी इनके अपनों ने मुंह मोड़ लिया। ऐसा ही सैकड़ों अस्थियों की पोटलियां शहर के तमामा श्मशान में अपनों का इंतजार कर रही हैं। लगभग डेढ़ साल से शहर के श्मशानों में कोरोना से मरने वालों की अस्थियां को लेने कोई नहीं आ रहा है। कोरोना ने हमें अपनों से दूर कर दिया है। बहुत दूर… इतना कि अब लोग सालभर बाद भी राख बन चुके शरीर से भी डरे हुए हैं। ये डर उस राख से हैं जिसने कुछ समय पहले तक हमें अपनी परंपराओं व आस्थाओं के साथ जोड़ रखा था। पूरे इंदौर शहर में कई ऐसे श्मशान हैं जहां अस्थियां तो मौजूद हैं, लेकिन लेने वाला कोई नहीं। सूत्रों की माने तो कई श्मशान के कर्ताधर्ता ने अस्थियों को अपने लेवल पर या तो विसर्जित कर दिया है कि फिर उन्हें ठीकाने लगा दिया हैं। कुछ मुक्तिधाम समिति के सदस्यों का यह भी कहना हैं कि कई अपनों ने तो परिजनों की अस्थियां ले जाने से इंकार तक कर दिया है। कईयों का कहना हैं कि ये अस्थियां उनके परिवार के किसी सदस्य की है ही नहीं।

गलत फोन नंबर बता गए परिजन

रीजनल पार्क मुक्तिधाम समिति के सदस्यों का कहना हैं करीब 12 अस्थियां ऐसी हैं जिन्हें उनके परिवार वालों को बुलाने पर भी नहीं आए। परिवार के सदस्यों से जब फोन पर संपर्क किया तो चौंकाने वाली बात सामने यह आई कि कई परिजनों ने तो फोन नंबर भी गलत लिखवा रखे थे तो कईयों ने तो साफ इंकार कर दिया कि मुक्तिधाम में रखी अस्थियां उनके परिजनों की है ही नहीं। वहीं कई लोग आने का बोलते जरुर है, लेकिन छह महीने से अधिक समय होने आया कोई इन अस्थियों को लेने नहीं आया। अस्थियों का कोई दावेदार न होने की स्थिति में जल्द ही उचित निर्णय लिया जाएगा। दरअसल कोरोना काल में कोरोना से मरने वालों का अंतिम संस्कार इंदौर नगर पालिक स्वयं कर रही थी। परिजन को मृतक के शरीर को छूने और अंतिम संस्कार की इजाजत नहीं थी, लेकिल अस्थियों को ले जाने पर कोई पाबंदी नहीं थी, इसके बावजूद सैकड़ों अस्थियां को लेने कोई नहीं पहुंचा।

समिति ने अभी भी सहेज रखी है अस्थियां

मुक्तिधाम समिति के सदस्यों ने अस्थियों को सहेज कर रखा है। लोगों से अपील की है कि अपने परिचितों की अस्थियां श्मशान से लेकर जाएं और उनका उचित विसर्जन करें। कई लोगों से संपर्क कर अस्थि कलश ले जाने के लिए कहा गया, लेकिन कोई नहीं आया। समिति ने इन अस्थियों को अभी भी सहेज रखा है। मालवा मिल मुक्तिधाम पर तो लॉकर के अलावा नीचे फर्श पर ही कई लोगों की अस्थि कलश को रखा गया है। वहां की खिड़कियों तक पर अस्थियां बंधी हुई हैं। मालवा मिल मुक्तिधाम पर काम करने वाले एक कर्मचारी का कहना हैं अंतिम संस्कार के बाद यहां लोग अपने काम-काज में व्यस्त होकर यह भी भूल गए कि इनके अपनों की अस्थियों का विसर्जन भी होना है।

अस्थियों का विसर्जन की महत्वपूर्ण परंपरा

धार्मिक मान्यता के अनुसार किसी मृतक की अस्थियों का विसर्जन हिंदू रीति-रिवाज के हिसाब से त्र्योदशी संस्कार से पहले किया जाना चाहिए, लेकिन इस बार कोरोना काल के चलते लागे अपनों की अस्थियों को विसर्जन के लिए नहीं ले गए। हिंदू धर्म में अस्थियों के विसर्जन की महत्वपूर्ण परंपरा सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना हैं हिंदू धर्म में अस्थियों के विसर्जन की महत्वपूर्ण परंपरा है। धार्मिक मान्यता है कि पितृ पक्ष में तर्पण, श्राद्ध और अस्थि विसर्जन करने से पूर्वजों को मोक्ष मिलता हैं। लोग कहते हैं कि वक्त बदलता है लेकिन अब वक्त ने यह साबित कर दिया कि लोग कितने बदल गए हैं। कोरोना काल में अपने ही अपनों को भूल गए। हिंदू पद्धति में जो मृतक होते हैं उनके परिवारजन लगभग 13 दिन के अंदर अंतिम संस्कार के बाद अस्थि विसर्जन करते हैं लेकिन दुर्भाग्य है कि कई मृतक के परिजनों ने करीब एक से डढ़़ साल होने के बाद भी अस्थि विसर्जन को लेकर सुध नहीं ली।

अब मोक्ष मिलना भी आसान नहीं

शहर के कई मुक्तिधाम में नजर दौड़ानें पर ऐसा लगता है कि महामारी से जान गंवाने वालों को अब मोक्ष मिलना भी आसान नहीं। शहर के अलग-अलग श्मशान घाटों में रखी गई लोगों की अस्थियां इस बात की गवाह है। शहर के श्मशान घाटों में सैकड़ों लोगों की अस्थियां रखी हुई हैं। अस्थियों के विसर्जन के लिए परिजन उनकी सुध भी नहीं ले रहे हैं। अब ये अस्थियां मोक्ष पाने के इंतजार में हैं।

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